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________________ रोहिणीकहा ८७ अहिगयकलाकलावा, पत्ता लायण्णलहरिमणहरणं । नवजोव्वणावयारं, विहियवियारं सुराणं पि ॥११०५॥ विहियारंभस्स इमा, वम्महवीरस्स भवनविजयाय । लायन्नसलिलपुण्णं, चलिरं दुग्गं व पडिहाइ ॥११०६॥ तिस्सा नवमुहपंकयलच्छिं पिच्छित्तु पंकएहिं पि । पंके अप्पा खित्तो ससी नहे भमइ संतत्थो ॥११०७।। तं दठूणं तरुणा, सुराण ओवाइयाई वियरंति । तिव्वतवं तरुणीओ, कुणंति विविहेस तित्थेस ॥११०८॥ हरिहिययअंधयारे, लक्का लच्छी उमा य तह मन्ने । हर अद्धंगपविट्ठा, जीसे समसिसिया भीया ॥११०९॥ निम्मलकवोलदप्पणसंकेता जीइ रयणताडंका ।। लायण्णामयणहरए, सहति खत्त व्व ससि-सूरा ॥१११०॥ पाउससमए एसा, पिच्छिय सरियाए गरुयमंजूसं । पूरेण निज्जमाणिं, जाईसरणं समणुपत्ता ॥११११।। तो पव्वभवब्भासा, भणिज्जमाणा वि जणणि-जणएहिं । परिसं विसं व मनइ, अवमन्नइ तस्स चित्तं पि ॥१११२।। छेएण तेण रत्ना, पुरस्स ईसाणकोणदेसम्मि । निम्माविय मणिभवणं, एसा मक्का तहिं कन्ना ॥१११३॥ सा नारी परिवारा, कहमवि मणिभवणसिहरमारूढा । पिच्छेइ समरसीहं, पविसंतं नयरमज्झम्मि ॥१११४॥ मन्नइ मणम्मि एसा, इमस्स नरसेहरस्स अमयमया । का वि नवा तणलच्छी, गई वि अवरा नवा का वि ॥१११५।। मन्ने नरो न एसो, किं पण अम्हारिसाण सहीयाण । उवरिमिणं पारक्कं, हयविहिणा इत्थ पट्ठवियं ॥१११६॥ जम्मसयरम्मपिम्मो, तत्तो मह को वि बंधवो एसो । इय चितंती एसा, तेण वि कुमरेण सच्चविया ॥१११७॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002597
Book TitlePaumappahasami Cariyam
Original Sutra AuthorDevsuri
AuthorRupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages530
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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