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________________ अनुसार वर्धमानसूरि के गुरु ८४ स्थानों के अधिपति थे। इन्हीं ८४ स्थान/मठों को परवर्ति विद्वानों ने ८४ गच्छ मान लिये हों, ऐसा संभव है। क्षमाकल्याणोपाध्याय के पूर्व किसी भी प्राचीन पट्टावलिकार ने इसका उल्लेख नहीं किया है। तपागच्छ परम्परा में श्री गुणरत्नसूरि स्वरचित गुरुपर्वक्रमवर्णन (पद्य १८ से २०) में लिखा है - 'विक्रम सं० ९९४ में उद्योतनसूरि संघ के साथ आबू के समीप टेलीपुर में बृहद्वट (विशाल बड़े वृक्ष) के नीचे शुभ मुहूर्त देखकर अपने पद पर ८ आचार्यों को प्रतिष्ठित किया था। विशाल बड़ के नीचे यह संस्थापना होने से यह गच्छ बृहद् गच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ और उसके प्रथम आचार्य सर्वदेवसूरि हुए।' इसी प्रकार महोपाध्याय धर्मसागर रचित तपागच्छ पट्टावली स्वोपज्ञ वृत्ति में लिखा है - 'श्री विमलचन्द्रसूरि के पट्ट पर उद्योतनसूरि हुए। आबू की यात्रा करते हुए टेली ग्राम की सीमा में विशाल वट-वृक्ष की छाया में बैठे हुए श्रेष्ठतम मुहूर्त देखकर वीर सम्वत् १४६४ और विक्रम सम्वत् ९९४ में अपने पट्ट पर सर्वदेवसूरि आदि ८ आचार्यों को स्थापित किया।' कितने ही पट्टावलिकार कहते हैं - 'केवल सर्वदेवसूरि को ही स्थापित किया था। वट-वृक्ष के नीचे सूरि पद देने से यह गच्छ वट गच्छ/बृहद् गच्छ के नाम से जग में प्रसिद्ध हुआ।' इन दोनों प्राचीन उल्लेखों से भी स्पष्ट है कि तपागच्छ की परम्परा में भी उद्योतनसूरि के द्वारा केवल १ अथवा ८ आचार्य ही अपने पट्ट पर स्थापित किये गये थे न कि ८४ । अतः यह विचारणीय प्रश्न बनता है कि ८४ गच्छ के संस्थापक उद्योतनसूरि थे, यह धारणा किस प्रकार प्रचलित हो गई? यह विद्वानों के लिए शोध का विषय है। बृहद्गच्छ के संस्थापक उद्योतनसूरि और खरतरगच्छीय वर्धमानसूरि के गुरु उद्योतनसूरि के समय में भी अन्तर है। अतः दोनों उद्योतनसूरि पृथक्-पृथक् हैं, यह मानने में कोई संदेह नहीं है। दूसरी बात चौरासी गच्छों के जो नामोल्लेख मिलते हैं, उनमें से कई गच्छ पूर्ववर्ती और कई गच्छ परवर्ती हैं जो कई शताब्दियों में प्रचलित हुए हैं। अतः इस घटना के साथ सम्बन्ध जोड़ना ऐतिहासिक दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। योगनिष्ठ आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरि ने अपने 'जैन गच्छमत प्रबन्ध' नामक पुस्तक में (अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल, पादरा से प्रकाशित) में ९९ गच्छों के नाम इस प्रकार दिये हैं १. निर्ग्रन्थ गच्छ २. कोटिक गच्छ ३. वनवासी गच्छ ४. उपकेश गच्छ ५. वज्र शाखा गच्छ ६. नागिल गच्छ ७. खण्डिल्ल शाखा गच्छ ८. निर्वृत्तिकुल राजचैत्र गच्छ . ९. ब्रह्मद्वीप गच्छ १०. हर्षपुरीय गच्छ ११. मल्लधारी गच्छ १२. सांडेर गच्छ १३. वड गच्छ १४. कोरंट गच्छ १५. कूर्चपुरीय गच्छ (२२) स्वकथ्य Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002594
Book TitleKhartar Gacchha ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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