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________________ जो गुण सभी द्रव्यों में पाया जाये वह सामान्य और जो अमुक द्रव्य में ही पाया जाये वह विशेष गुण है। __ कार्तिकेयानुप्रेक्षा में शुभचंद्र ने छः सामान्य गुणों की व्याख्या इस प्रकार की है- जिससे द्रव्य का नाश न हो वह अस्तित्व, जिससे अर्थक्रिया हो वह वस्तुत्व, जिससे सदा परिणमन हो वह द्रव्यत्व, जिससे द्रव्य किसी न किसी के ज्ञान का विषय हो वह प्रमेयत्व, जिससे द्रव्यांतर एवं गुणांतर न हो वह अगुरुलघुत्व, जिससे द्रव्य का कोई न कोई आकार बना रहे वह प्रदेशित्व गुण है।' __ गुण की व्याख्या करते हुए उमास्वाति ने कहा कि “गुण द्रव्य के आश्रित और स्वयं निर्गुण होते हैं।" प्रवचनसार की टीका में अमृतचंद्राचार्य ने गुण को सामान्य-विशेषात्मक कहा है। उन्होंने अस्तित्व, नास्तित्व, एकत्व, अन्यत्व, द्रव्यत्व, पर्यायत्व, सर्वगतत्व, असर्वगतत्व, सप्रदेशत्व अप्रदेशत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व, सक्रियत्व, अक्रियत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, कर्तृत्व, अकर्तृत्व, भोक्तृत्व, अभोक्तृत्व, अगुरुलघुत्व इत्यादि को सामान्य ; एवं गतिनिमित्तता, स्थितिकारणत्व, अवगाहनत्व, वर्तनाय तनुत्व, रूपादिमत्व एवं चेतनत्व को विशेष गुण कहा है।' वस्तु अनंतधर्मात्मक हैः-सहभावी गुण और क्रमभावी पर्याय होते हैं। प्रत्येक वस्तु अनंतधर्मात्मक होती है। सभी वस्तुओं में अगर हम पदार्थ में अनंतधर्मों को स्वीकार नहीं करते तो वस्तु की सिद्धि नहीं होती, अतः वस्तु अनंतधर्मात्मक ही माननी चाहिए।' एक अन्य अपेक्षा से पर्याय के दो प्रकार हैं- अर्थपर्याय एवं व्यंजनपर्याय। भेदों की परंपरा में जितना सदृश परिणामप्रवाह किसी भी एक शब्द के लिए वाच्य बन कर प्रयुक्त होता है वह प्रवाह व्यंजनपर्याय कहलाता है। और उस परंपरा में जो भेद अंतिम और अविभाज्य है वह अर्थपर्याय कहलाता है। जैसे चेतन पदार्थ का सामान्य रूप जीवत्व है। काल कर्म आदि के कारण 1. वही. 2. द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः त. सू. 5.41. 3. प्र. सा. ता. प्र. पृ. 95. 4. अनंतकालस्त्रिकालविषयत्वाद... तदनंतधर्मात्मकम्" स्याद्वाद0 22.200. 5. अनंतधर्मात्मकमेव... सत्वमसूपपादम् अन्यययो. 22. 26 . Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002592
Book TitleDravyavigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyutprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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