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________________ ८० / जैन दर्शन और अनेकान्त I और अचिन्तित (भविष्यकालीन) पुद्गलों को कैसे जाना जा सकता है, इस पहेली को सापेक्षवाद के द्वारा ही सुलझाया जा सकता है । सापेक्षवाद के अनुसार हमारी पृथ्वी पर काल की गणना सूर्य की गति पर निर्भर है। पृथ्वी से दो हजार प्रकाश वर्ष की दूरी वाले ग्रह पर रहने वाला मनुष्य किसी शक्तिशाली टेलिस्कोप से पृथ्वी की ओर देखे तो उसे अतीत का घटनाक्रम उसी प्रकार दिखाई देगा जैसे वह अभी घटित हो है । इस प्रकार हमारी पृथ्वी पर रहने वालों के लिए जो वर्तमानकाल है, वह अन्यग्रहवासियों के लिए भविष्य है। पृथ्वीवासी के लिए जो भूतकाल है, वह अन्यग्रहवासियों के लिए वर्तमान है। इसी प्रकार अन्यग्रहवासी के लिए जो वर्तमान है, वह पृथ्वीवासी के लिए भविष्य है । अन्यग्रहवासी का भूतकाल पृथ्वीवासी का वर्तमान काल है । इससे स्पष्ट प्रमाणित होता है कि अतीत, भविष्य और वर्तमान – ये सब सूर्य - गति- सापेक्ष हैं। रहा मूल द्रव्य निरपेक्ष: पर्याय सापेक्ष सापेक्षवाद के अनुसार पदार्थ की गति ही एकमात्र निरपेक्ष सत्ता है । प्रकाश की गति पर समय सिकुड़ जाता है। इस अवस्था में अतीत, भविष्य और वर्तमान का अन्तर समाप्त हो जाता है । प्रकाश की गति से चलने वाले यान में बैठा हुआ आदमी भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को जान सकता है । यदि प्रकाश की गति से चलने वाले यान की गति बढ़ा दी जाए तो समय का प्रवाह विपरीत दिशा में होने लग जाएगा । वह भविष्य से और वर्तमान से अतीत की ओर लौटेगा । जैन दर्शन के अनुसार चेतन और अचेतन मूल द्रव्यों की निरपेक्ष सत्ता है। उनमें घटित होने वाले सारे पर्याय सापेक्ष हैं। निरपेक्ष जगत् के नियम सापेक्ष जगत् के नियम से भिन्न हैं । इसलिए निर्पेक्ष जगत् के नियमों के आधार पर सापेक्ष जगत् के नियमों और सापेक्ष जगत् के नियमों के आधार पर निरपेक्ष जगत् के नियमों की व्याख्या नहीं की जा सकती । काल्पनिक नहीं है पदार्थ की विविधता द्रव्य का वास्तविक या अपरिवर्तननीय स्वरूप उसके घटक अवयव (प्रदेश राशि) हैं। वह निर्पेक्ष हैं । वह इन्द्रियों से दृश्य नहीं है । हम द्रव्यात्मक जगत् को १. नदी सूत्र, ३२ । गोम्मटसार, जीवकाण्ड, ४० । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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