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________________ स्यावाद और जगत् / ३१ साथ ही इसका अर्थ यह भी है कि वस्तु या बाह्य वास्तविकता की सत्ता मन से स्वतन्त्र है । प्रकृति की इस समझ को भौतिकवाद कहते हैं। यह भूताद्वैतवाद है। इसके अनुसार अचेतन से चेतन उत्पन्न होता है। अचेतन और चेतन सर्वथा भिन्न नहीं हैं। अनेकान्त दृष्टि ____ अनेकान्त दृष्टि के अनुसार चेतन अचेतन से और अचेतन चेतन से उत्पन्न नहीं हैं। दोनों अनादि हैं, दोनों स्वतन्त्र और दोनों सापेक्ष हैं। चेतन का एक प्रतिभाग भी मिश्रित नहीं है। वह शुद्ध द्रव्य है । उसका प्रत्येक परमाणु (प्रदेश) अन्त तक चेतन ही रहता है। अचेतन का प्रत्येक परमाणु (प्रदेश) अन्त तक अचेतन ही रहता है। चेतन को अचेतन और अचेतन को चेतन के रूप में परिणत नहीं किया जा सकता। द्रव्य गुणों का संयुक्त रूप होता है। सब द्रव्यों की यही व्याख्या है। जो द्रव्य हैं, उन सबमें अनन्त गुण हैं और अनन्त गुणों के जितने समवाय हैं, वे सब द्रव्य हैं। इस भाषा में या तो द्रव्य अनन्त होंगे या एक। सच्चाई यह है कि वे अनन्त भी नहीं हैं और एक भी नहीं है। सर्वसाधारण गुणों की दृष्टि से द्रव्य एक ही है, किन्तु कुछ गुण ऐसे भी हैं, जो सर्वसाधारण नहीं हैं। उन्हीं की दृष्टि से द्रव्य अनेक हैं। गति और स्थिति विश्व-व्यवस्था के असाधारण गुण हैं। स्थूल पदार्थों की गति दृश्य निमित्तों से होती है, किन्तु सूक्ष्म स्कन्धों और परमाणुओं की गति में वायु या विद्युत आदि सहायक नहीं होते। वे उन्हें छू भी नहीं पाते। परमाणु की अप्रेरित गति बहुत तीव्र होती है। वह एक क्षण में ही लोक के निम्न भाग से ऊर्ध्व भाग तक चला जाता है। वहां उसकी गति का माध्यम गतितत्त्व (धर्मास्तिकाय) ही होता है। गतितत्त्व गतिमात्र में माध्यम बनता है, किन्तु जहां दृश्य माध्यम होते हैं, वहां उसकी अनिवार्यता ज्ञात नहीं होती। जहां दृश्य माध्यम कार्य नहीं करते, वहां उसका अस्तित्व स्वयं व्यक्त होता है। ईथर की कल्पना १८वीं एवं १९वीं शताब्दी के भौतिक विज्ञानवेत्ताओं के समक्ष यह स्पष्ट हो गया कि यदि प्रकाश की तरंगें होती हैं तो उनका कुछ आधार भी होगा। जैसे पानी सागर की तरंगों को पैदा करता है और हवा उन कम्पनों को जन्म देती है, जिन्हें हम १. एमिल बर्स, मार्क्सवाद क्या है? पृ.६८। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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