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________________ द्वैतवाद / १३ - अस्तिकाय का अर्थ है-प्रदेश-राशि। पुद्गलास्तिकाय की सबसे छोटी इकाई परमाणु है । वह वियुक्त अवस्था में परमाणु और संयुक्त अवस्था में प्रदेश कहलाता है। दो परमाणुओं के मिलने से बना हुआ स्कन्ध द्विप्रदेशी स्कन्ध कहलाता है। पुद्गलास्तिकाय को छोड़कर शेष चार अस्तिकाय अविभागी हैं। इनका एक ही स्कंध होता है। उसका कोई भी भाग कभी पृथक् नहीं होता। इसलिए चार अस्तिकायों के प्रदेश होते हैं, परमाणु नहीं होते। अवगाहन की दृष्टि से एक परमाणु एक प्रदेश के तुल्य होता है । एक जीवास्तिकाय के असंख्य प्रदेश होते हैं और वे सब चैतन्यमय होते हैं। धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय के असंख्य प्रदेश होते हैं। आकाश के अनन्त प्रदेश होते हैं। इनका अपना-अपना विशेष गुण है। धर्मास्तिकाय के सभी प्रदेशों में स्थिति में सहयोगी बनने की क्षमता है। अधर्मास्तिकाय के सभी प्रदेशों में गति में सहयोगी बनने की क्षमता है। आकाश के प्रदेशों में अवगाह देने की क्षमता है। पुद्गलास्तिकाय के परमाणुओं और प्रदेशों में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श की क्षमता है । इन पांचों अस्तिकायों के अपने-अपने विशेष गुण हैं । वे गुण अपने-अपने द्रव्य से कभी पृथक् नहीं होते और न कभी एक-दूसरे में परिवर्तित होते हैं। पांचों अस्तिकायों की द्रव्य राशि (mass) भी ध्रुव है। पुद्गलास्तिकाय विभागी द्रव्य है। इसलिए कभी परमाणु संयुक्त होकर स्कन्ध निर्मित कर देते हैं और कभी वियुक्त होकर वे परमाणु बन जाते हैं। अविभागी अस्तिकायों का एक प्रदेश भी कम हो तो वे अस्तिकाय नहीं कहलाते । उनका पूर्ण स्कन्ध ही अस्तिकाय कहलाता है। अस्तिकाय का नियम __ गौतम ने भगवान महावीर से पूछा 'भंते ! धर्मास्तिकाय के एक, दो, तीन आदि प्रदेशों को धर्मास्तिकाय कहा जा सकता है? 'गौतम ! नहीं कहा जा सकता।' 'भंते ! उन्हें धर्मास्तिकाय क्यों नहीं कहा जा सकता?' 'गौतम ! चक्र का खंड चक्र कहलाता है या पूरा चक्र चक्र कहलाता है?' 'भंते ! चक्र का खंड चक्र नहीं कहलाता, पूरा चक्र चक्र कहलाता है।' 'गौतम ! छत्र का खंड छत्र कहलाता है, या परा छत्र छत्र कहलाता है?' 'भंते ! छत्र का खंड छत्र नहीं कहलाता, पूरा छत्र छत्र कहलाता है।' 'गौतम ! चर्मरत्न का खंड चर्मरत्न कहलाता है या पूरा चर्मरल चर्मरल कहलाता ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002589
Book TitleJain Darshan aur Anekanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size7 MB
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