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________________ मध्य प्रदेश | जैन तीर्थ परिचायिका ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही दिगम्बर व श्वेताम्बर धर्मशालाएँ हैं, जहाँ बिजली, पानी, बर्तन आदि की सारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं। श्वेताम्बर धर्मशाला में भोजनालय की भी व्यवस्था है। क्षेत्र की भोजनशाला में सशुल्क भोजन व्यवस्था है। बाजार एवं होटल निकट ही है। जिला टीकमगढ़ मूलनायक : श्री शान्तिनाथ भगवान, कायोत्सर्ग मुद्रा। के मार्गदर्शन : यह तीर्थ अहार गाँव के निकट मदनेस सागर एवं सुरम्य पहाड़ियों के मध्य स्थित श्री अहारजी तीर्थ है। यह स्थल बलदेवगढ़-छत्तरपुर मार्ग में टीकमगढ़ से 25 कि.मी. दूर है। इन स्थानों से पेढ़ी : टैक्सी और बसों की सुविधाएँ हैं। आखिर तक पक्की सड़क है। यहाँ से पपौराजी 30 कि.मी., श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरि 58 कि.मी., खुजराहो 132 कि.मी., नैनगिरि 125 कि.मी. दूर है। यहाँ से निकटतम अहारजी, जिला टीकमगढ़ रेल्वे स्टेशन ललितपुर 83 कि.मी. तथा झाँसी 115 कि.मी. है। झाँसी पर सभी प्रान्तों से (मध्य प्रदेश) ट्रेनों का आवागमन रहता है। प्रत्येक गाड़ी का यहाँ ठहराव है। स्टेशन से टीकमगढ़ के लिए फोन : 07683-32345 बस सुविधा उपलब्ध है। सीधे तीर्थ के लिए भी बसें मिल जाती हैं। परिचय : प्राचीनकाल में मदनेसपुर, मदनेसागरपुर, वसुहारिकपुर तथा नन्दनपुर आदि नामों से यह तीर्थ स्थल प्रसिद्ध था। श्री पानाशाह के समय में अनेकों मुनिराजों का यहाँ आहार हुआ करता था। जिससे इसका नाम अहार पड़ा। अनेकों जिन मन्दिरों के अवशेष आज भी यहाँ के आसपास की पहाड़ियों पर पाये जाते हैं। कलाकार श्री पापट द्वारा निर्मित इस भव्य, शान्त प्रतिमा का प्रतिष्ठापन यहाँ के राजा श्री मदन वर्मा के शासन काल में सेठ रलहणजी ने विक्रम सं. 1237 में करवाया था। यहाँ शिलालेखों में जैन समाज की 32 अफ़्रजातियों का व भट्टारकों के शिष्य-प्रशिष्यों एवं आर्यकाओं की शिष्याओं-प्रशिष्यों का वि. सं. 1200 से 1607 तक का उल्लेख मिलता है। यहाँ पर अभी भी अनेकों प्रकार की चमत्कारिक घटनाएँ घटती रहती हैं। प्रति वर्ष मार्गशीर्ष शुक्ला 13 से पूर्णिमा तक वार्षिक मेला होता है। इसी परकोटे में सात और मन्दिर हैं। प्रतिमा सुन्दर और कलात्मक है जिसे देखने पर ऐसा लगता है कि प्रतिमा पन्ने की बनी है। एक ही शिला में निर्मित दसवीं सदी का एक युगल मानस्तम्भ दर्शनीय है। मुख्य मन्दिर में पूजा का समय प्रातः 7 बजे से 11 बजे तक है। ठहरने की व्यवस्था : मन्दिर के निकट ही सभी सुविधायुक्त विशाल धर्मशाला है। भोजनशाला उपलब्ध है। समय प्रातः 10 बजे से सायं 5.30 बजे तक है। श्री पपोराजी तीर्थ मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान, पद्मासनस्थ। मार्गदर्शन : यह तीर्थ टीकमगढ़ से 5 कि.मी. दूर विशाल गगनचुम्बी शिखरोंयुक्त 108 मन्दिरों पेढ़ी: के साथ स्थित है। यहाँ से ललितपुर 57 कि.मी. व झाँसी 87 कि.मी. दूर है। इन जगहों से श्री दिगम्बर जैन अतिशय बस व टैक्सी की सुविधाएँ हैं। मन्दिर तक पक्की सड़क है। क्षेत्र, पपौराजी डाकघर पपौराजी, परिचय : कहा जाता है कि इसका प्राचीन नाम पम्पापुर था। तीर्थाधिराज श्री आदीश्वर भगवान जिला टीकमगढ़ की प्राचीन प्रतिमा भोयरे में है जिस पर सं. 1202 का लेख उत्कीर्ण है। कहा जाता है रघुपति (मध्य प्रदेश) श्री रामचन्द्रजी ने अयोध्या से ओरछा के प्रवास काल में इन वनों में निवास किया था। यहाँ पर अनेकों प्रकार की चमत्कारिक घटनाएँ घटती आ रही हैं। इसी विशाल परकोटे में Jain 48ction International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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