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________________ राजस्थान जैन तीर्थ परिचायिका वहाँ देवाधि देव श्री पार्श्वनाथ प्रभु की सप्तफणी प्रतिमा है। तब सेठ ने और उनके मित्रों ने वह प्रतिमा निकालकर मंदिर का काम शुरु किया। अर्थाभाव के कारण कार्य कुछ रुक गया किन्तु अधिष्टायक देव की सहायता से स्वर्णमुद्राएँ प्राप्त हुईं और मंदिर का निर्माण कार्य चलता रहा। इस मंदिर की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 1181 में आचार्य श्री धर्मघोष सूरी जी म. के सानिध्य में संपन्न हुई। इस मंदिर पर सुलतान शहाबुद्दीन सैनिकों ने आक्रमण किया तब सुलतान बहुत बीमार हुआ, इसलिये उसने मंदिर पर आक्रमण न करने का आदेश सैनिकों को दिया। यहाँ पर इस प्रकार कई चमत्कारी घटनाएं होती रहती हैं। प्राचीन प्रभु प्रतिमा अति ही सुन्दर, साक्षात एवं चमत्कारी हैं, प्रभु दर्शन से भक्तों की आकांक्षा पूरी होती है ऐसी यहाँ की मान्यता है। यहाँ पार्श्वनाथ भगवान व महावीर भगवान के भवपट्ट अत्यन्त मनोहारी एवं कलात्मक ढंग से गढ़े गये हैं। ठहरने की व्यवस्था : मंदिर के अहाते में ही विशाल धर्मशाला है, भोजनशाला की सुविधा है। श्री नागौर तीर्थ पेढ़ी : श्री जैन श्वेताम्बर मंदिरमार्गी ट्रस्ट बड़ा जैन मंदिर, मु. पो. नागौर (राजस्थान) मूलनायक : श्री आदीश्वर भगवान। मार्गदर्शन : मंदिर से लगभग 2 कि.मी. दूर यहाँ का रेल्वे स्टेशन है। नागौर मेड़ता-बीकानेर रेल्वे लाईन पर स्थित है। फलवृद्धि पार्श्वनाथ तीर्थ (मेड़ता रोड) से यह स्थल लगभग 63 कि.मी. दरी पर स्थित है। यहाँ से खींवसर तीर्थ 43 कि.मी. दरी पर स्थित है। नागौर से जोधपर 140 कि.मी., बीकानेर 116 कि.मी. जयपुर 287 कि.मी. तथा अजमेर 160 कि.मी. दूर है। परिचय : यह मंदिर सोलहवीं सदी का माना जाता है, जो बड़े मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। अन्य मंदिर उसके बाद के हैं। यहाँ तपागच्छ, खरतरगच्छ, लोकागच्छ, पार्श्वचंद्रसूरीगच्छ के उपाश्रय हैं। विक्रम की बारहवीं सदी में यहाँ के वरदेव पल्लीवाल नामक धर्मश्रद्धालु श्रावक तथा उनके पुत्र आसधर और उनके पौत्रों ने विभिन्न जैन तीर्थस्थानों के मंदिरों का जीर्णोद्धार किया। इस प्रकार यह स्थान अनेक दानवीर श्रावकों की जन्मभूमि है। कई महान आचार्यों का यहाँ पर पदार्पण होने से इस स्थान का बड़ा महत्त्व है। मंदिर में काँच का काम अत्यन्त सुन्दर ढंग से किया गया है। ठहरने की व्यवस्था : ठहरने के लिए रेल्वे स्टेशन के पास धर्मशाला है। साथ ही तपागच्छ जैनभवन में पूर्व सूचना देने पर भोजन का प्रबन्ध किया जाता है। यहाँ देखने योग्य अकबर की पंच गंबदीय दरगाह एवं शाम मस्जिद मगलकालीन है। मगल शैली में निर्मित उद्यान आज भी अपना सौंदर्य बखान करते हैं। यहाँ साड़ियों एवं चुनरियों के रंगने एवं छपाई का कार्य प्रमुख है। नागौर के तांबे के सामान भी बहत प्रचलित हैं। खींवसर तीर्थ मूलनायक : श्री महावीर भगवान. चन्दन वर्ण। मार्गदर्शन : यह तीर्थ नागौर से 43 कि.मी. दूरी पर तथा जोधपुर से 99 कि.मी. दर नागौर-जोधपुर पेढ़ी : मार्ग पर स्थित है। यहाँ से ओसियां जी कपूरिया होते हुए 64 कि.मी. दूर पड़ता है। श्री महावीर भगवान जैन परिचय : कहा जाता है भगवान महावीर मरुभूमि में विचरे तब यहाँ उनका चातुर्मास हुआ था। मन्दिर श्री जैन श्वे. मन्दिर मार्गी 24वें तीर्थंकर श्री महावीर भगवान का यहाँ चातुर्मास हुआ माना जाने के कारण यहाँ की ट्रस्ट (नागौर) महान विशेषता है। मन्दिर गाँव के बाहर एकान्त में होने के कारण वातावरण शान्त व दृश्य डाकघर खींवसर-341025 अति सुन्दर लगता है। जिला नागौर (राजस्थान) ठहरने की व्यवस्था : नागौर ठहरकर ही यहाँ आना उचित है। 84 Jain Education International 2010 03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002578
Book TitleJain Tirth Parichayika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year2004
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size14 MB
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