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________________ [ २६५ ] सकती । किसी भी जाति या वेष के साथ भी धर्म का संबन्ध नहीं है । श्रीमद् राजचन्द्र ने कहा है जाति वेष नो भेद नहीं, कह्यो मार्ग जो होय । साधे ते मुक्ति लहे, एमा भेदन कोय | - आत्मसिद्धि १०७ अर्थात मोक्ष का मार्ग कहा गया है वह हो तो किसी भी जाति या वेष से मोक्ष हो सकता है इसमें कुछ भी भेद नहीं है । जो साधना करता है वह मुक्ति पद को प्राप्त करता है । मिथ्यात्व की मार्गानुसारी क्रिया की अनुमोदन करते हुए उपाध्याय विनयविजयजी ने कहा है - "मिथ्यादृशामप्युपकारसारं, संतोषसत्यादि गुणप्रसादम् । वदान्यता वैनयिकप्रकारं, मार्गानुसारीत्यनुमोदयामः ॥ आचार्य हेमचन्द ने कहा हैमोक्षोपायो योगी --शांतसुधारस ज्ञानश्रद्धानचरणात्मकः । -अभिधानचिन्तामणिकोष अर्थात् ज्ञान-दर्शन- चारित्रात्मक तीनों योग का उपाय है। वैदिक धर्म ने इन्हें ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग के नाम से निर्देश किया है । मिथ्यात्वों इन तीनों योग की आंशिक आराधना कर सकते हैं । चूँकि सम्यक्त्व के बिना संपूर्ण आराधना सम्भव नहीं है। मिथ्यात्वी राग-द्वेष में सीव्रता न लाये । श्री संघदास गणि ने कहा है Jain Education International 2010_03 " ततो रागद्दोसपबंधपडिओ रयमाइयइ, तन्निमित्तं च संखारे दुक्खभायणं होइ गीयरागा । - वसुदेव हिंडी, प्रथम खंड पृष्ठ १६७ अर्थात् राग-द्वेष से कर्मों का बंध होता है । उसके निमित्त से संसार में दुख के भाजन- गीत - राग होते हैं । मिथ्यावी यथाशक्ति इनसे छुटने का प्रयास करे । मिध्यात्वी दुष्कृत की निन्दा करे, सुकृति की संसार के भय और दुःखों से छुटकारा पाया जा I धनुमोदना करे । जिससे सके । धर्म में अनुरक्त For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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