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________________ नवम अध्याय १. उपसंहार आचार्य पूज्यपाद ने कहा है -- - मिथ्यादर्शनं द्विविधम् । नैसर्गिक परोपदेशपूर्वकं क। तत्र परोपदेशमन्तरेण मिथ्यात्वकर्मोदयवशाद् यदाविर्मवति तत्त्वार्थाश्रद्धानलक्षणं तन्नैसर्गिकम् । परोपदेशनिमित्त चतुर्विधम् ; क्रियाक्रियावाद्यज्ञानिकवैनयिकविकल्पात् । -तत्त्वा०८।१ सर्वार्थसिद्धिः अर्थात मिथ्यादर्शन दो प्रकार का है: १-नैसर्गिक-दूसरे के उपदेश के बिना मिष्यादर्शन कर्म के उदय से जीवादि पदार्थों का अश्रद्धान रूप भाव नैसर्गिक मिथ्यादर्शन है। २-परोपदेशपूर्वक-अन्य दर्शनी के निमित्त से होनेवाला मिथ्यादर्शन' परोपदेशपूर्वक कहलाता है। यह अक्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और अचानवादी-चार प्रकार का होता है। . उमास्वाति ने इन को क्रमशः अभिग्रहीत और अनभिग्रहीत मिथ्यात्व कहा है। मिष्यात्व के एकांत मिथ्यादर्शन आदि पाँच विभाग का भी उल्लेख मिलता है । आचार्य पूज्यवाद ने कहा है - तत्र इदमेव इत्थमेवेति धर्मिधर्मयोरभिनिवेश एकांतः "पुरुष एवेदं सर्वम्" इति वा नित्य एव वा अनित्य एवेति । सग्रन्थो निर्ग्रन्थः केवली कवलाहारी, स्त्री सिध्यतीत्येवमादिः विपर्ययः। १-तत्राभ्युपेत्यासम्यग्दर्शनपरिग्रहोऽभिग्रहीतमज्ञानिकादीनां त्रयाणां - त्रिषष्ठीनां कुवादिशतानाम् । शेषनभिग्रहीतम् । ----तत्वा०८।१-भाष्य Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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