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________________ [ २७१ ] अवश्य ही मोक्ष प्राप्त कर लेते है क्योंकि क्षायिक सम्बकत्व की प्राप्ति के बाद जीव संसार में तीन भव से अधिक नहीं करते ।' यथा-श्रेणिक राजा तथा कृष्णवासुदेव । किसी अपेक्षा से इनकी सम्यक्त्व को-रोचक सम्यक्त्व भी कहा गया है। (१६) शकडालपुत्र पहले गोशालक का श्रावक ( मिथ्यात्वी ) था। उसने भगवान महावीर को वंदन नमस्कार किया। धर्म सुना फलस्वरूप मिथ्याव से निवृत्त होकर श्रावक के बारह प्रतों को ग्रहण किया। एकामवावतारी होकर सोधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ। (१७)ज्ञावासूत्र के प्रथम अध्ययन में मेघकुमार का वर्णन है उसने अपने पिछले भव में ( हाथी के भव में) ज्ञान रहित था, पर उसने जिन आज्ञा का आराधन किया था, जिसके द्वारा अपरित्त संसार को परीत्त संसार करके मनुष्य की आयु बांधी। उसकी कथा संक्षेप में इस प्रकार है । मेधकुमार का जीव पूर्व-भव में हाथी था । वह सब हाथियों का मुखिया था। सब हाथी जंगल में विचरण कर रहे थे कि अकस्मात पन में दावानल लग गया। मेघकुमार के जीष ( जो सब हाथियों का स्वामी पा) को ज्ञानवरणीय कर्म के क्षयोपशम से जाति स्मरणशान उत्पन्न हुआ। (यह ज्ञान उत्कृष्ट अपने संगी के कृत लगातार नवभव को जान सकता है।) हाथियों का समूह गंगानदी के पक्षिण किनारे पर पाया, जहाँ पर मेघकुमार के जीव ने एक योजन का सम्बाचौड़ा मंडप प्रस्तुत कर रखा था। प्रायः सभी पशु वहाँ बाकर उस मंडप में घुस गये । मंडप पशुओं से ठसमठस भर गया। मेषकुमार का जीव (हापी ) एक (१) उत्तराध्ययन सूत्र अ २६ । सू१ (२) जैन सिद्धांत बोल संग्रह भाग १, बोल ८० (३) उवासगदसाओ प ७ (४) जातिस्मृतिरप्यतीतसंख्यातभवबोधिकाः मतिज्ञानस्यैव भेदः स्मृतरूपतया किल जातिस्मरणं चाभिनिबोधकं विशेष इति । -बापासंग टीका Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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