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________________ [ २५१ ] पढमसमयप्पहुडि पुव्वं व उदयावलियबाहिरे गलिदसेसमपुत्व-अणियट्टिकरणद्धादो विसेसाहियमायामेण पदेसग्गेण संजदगुणसेडिपदेस गादो असंखेज्जगुणं तदायामादो संखेज्जगुणहीणं गुणसेडिं करेदि । ठिदिअणुभागखण्डयघादे आउअवज्जाणं कम्माणं पुव्वं व करेदि । एवं दोहि वि करणेहि काऊण अणंताणुबंधिचठक्कहिदीओ उदयावलियबाहिराओ सेसकसायसरूवेण संछुहदि । एसा अणताणबंधिविसंजोजणकिरिया । जं संजदेण देसूणपुवकोडिसंजमगुणसेडीए कम्मणिज्जरं कदं तदो असंखेज्जगुणकम्ममेसो णिज्जरेदि । कधमेदं णव्वदे ? अणंतकम्मसे त्ति गहासुत्तादो। -षटखंड० ४, २, ४, ६५ पृ० २८८। पु० १. अर्थात् जब मिथ्यात्वी अनंतानुबंधी चतुष्क (क्रोध-मान-माया-लोभ ) को शुभलेश्यादि द्वारा विसंयोजन करता है सब अधःप्रवृत्तकरण-अपूर्व करण-अनिवृत्तिकरण-इन तीनों करणों के द्वारा करता है। अधःप्रवृतकरण में गुणश्रेणी नहीं है, अतः निर्जरा नहीं है उसका स्वभाव है। अपूर्वकरण के प्रथम समय से लेकर पूर्व को तरह उदयावलो के बाहर आयाम की अपेक्षा अपूर्व तथा अनिवृत्ति करण के काल से विशेष अधिक प्रदेशाग्न की अपेक्षा संयत-गुणश्रेणी के प्रदेसाग्र से असंख्यात गुण किंतु उसके गायाम से संख्यात गुण हीन-इसप्रकार के गलिप्त शेष गुणश्रेणो करता है। आयुष्यकम को बाद देकर शेष कर्मों का स्थितिकांडकघात और अनुभागकांडकघात पूर्व की तरह करता है। इस प्रकार दोनों ही करणों के द्वारा अनंतानुबंधोयचतुष्क को उदयावलो के बाहर की सब स्थितियों को शेष कषायों के रूप से परिणमन करता है। इस प्रकार मिथ्यात्वी शुभ परिणामादि के द्वारा अनंतानुबंधीय चतुष्क के विसंयोजन की प्रक्रिया करता है। संयत से कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण संयतगण श्रेणी द्वारा जो कर्मनिर्जरा करता है। अर्थात अनंतानुबंधीका विसंयोजन करने वाले को संयत की अपेक्षा असंख्यात गुण कम निर्जरा होती है । अस्तु सिद्धांत में इसका प्रतिपादन कियागया है कि पृथ्वीकाय, अपकाय, बनस्पतिकाय, नारकी जीवों में से कोई एक जीव अनंतर भवमें मोक्ष पद की Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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