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________________ [ १२२ ] यहाँ मिन्यादर्शनलग्धि' को क्षायोपशमिक भाव में उल्लेख किया है। दांन मोहनीयकर्म के क्षयोपशम होने से मिथ्यादर्शनलम्षि की प्राप्ति होती है। बीवोदय निष्पन्न भाष से जो मिथ्यादृष्टि की उपलब्धि होती है वह सावध है। इसके विपरीत दर्शन मोहनीय कर्म के क्षयोपशम भाव से निष्पन्न 'मिथ्यादर्शन सन्धि' निरपद्य है। अनुयोगद्वार सूत्र में क्षायोपशमिक भाव में मतिअज्ञान,श्रुतअज्ञान तथा विभंग अज्ञान ; श्रोत्रेन्द्रिय आदि पाँच इन्द्रिय आदि का भी उल्लेख है-ये भावनिरवद्य है । आचार्य पुष्पदन्त-भूतबलि ने भी [षटखंडागम भाग ५, ६। सू १९। पुस्तक न. १४] क्षयोपशम निष्पन्न भाव में मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगअज्ञान श्रोत्र न्द्रिय बादि का उल्लेख किया है। अस्तु मतिअज्ञान आदि तीन अज्ञान तथा श्रोत्रे न्द्रिय आदि पांच इन्द्रिय मिथ्यात्वी के भी होती है। मिथ्यात्वी को भी द्रव्यरूप इन्द्रिय अंगोपांग नामकर्म और इन्द्रिय पर्याप्तिनामकर्म के सामर्थ्य से होती है तथा भावेन्द्रिय को प्राप्ति-सानावरणीय आदि कर्म के क्षायोपशम से होती है । कहा है"क्षायोपशामिकानीन्द्रियाणि" -प्रज्ञापना पद २३।२।१६९३ अर्थात् क्षायोपशमिक–क्षयोपशम से भावेन्द्रिय की प्राप्ति होती है। भावेन्द्रिय-ज्ञान रूप व्यापार है। ___३ : मिथ्यात्वी और लब्धि मानादि के प्रतिबंधक ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के क्षय, क्षयोपशम या उपशम से मात्मा में ज्ञानादि गुणों का प्रकट होना 'लब्धि' है । कहा हैतत्र लब्धिरात्मनो ज्ञानादिगुणानां तत्तत्कर्मक्षयादितो लाभः । भग० श ८ उ १०। स १३९। टीका आगम में इस प्रकार की लब्धि हो गई हैदसविहा बडी पन्ना, संजहा-णाणलद्धी, खणलद्धी, चरित्तलक्षी, परित्ताचरित्तद्धी, दाणलद्धी, लाभलद्धी, मोगलद्धी, उपभोग --भग० श ८ उ २४साक्षस Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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