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________________ [ ११० ] किच्चा देवेसु उववज्जइ ? गोयमा! बालपंडिए णं मणुस्से तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमपि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा , णिसम्म देसं उवरमइ, देसं णो उवरमइ, देसं पच्चखाइ, देसं णो पच्चक्खाइ । से तेण?णं देखोवरम-देसपच्चक्खाणेणं णो णेरइयाउयं पकरेइ, जाव-देवाउयं किच्चा देवेसु उववज्जइ । से तेण?णं जाव-देवेसु उववज्जइ । -भगवती श १, उ ८, प्रश्न ३६२, ६३ ' अर्थात् बाल पंडित मनुष्य-नरकायु नहीं बांधता है, वियंचायु नहीं बांधता है, मनुष्यायु नहीं बांधता है; परन्तु देवायु को बांधकर देवलोक में उत्पन्न होता है। क्योंकि बालपंडित मनुष्य (पंचमगुणस्थानवर्ती जीव) तथा रूप श्रमण या माहण के पास से एक मो धार्मिक आयं वचन सुनकर, धारण करके एक देश से विरत होता है, एक देश से प्रत्याख्यान करता है और एक देश से प्रत्याख्यान नहीं करता है अत: देशविरति और देशप्रत्याख्यान के कारण वह नरकायु, तियंचायु और मनुष्यायु का बंध नहीं करता, लेकिन देवाय बांधकर देवों में उत्पन्न होता है। इस हटान्त आधार पर यह कहा जा सकता है कि जो मिथ्यादृष्टि जोव महारंभ, महापरिग्रहादि वाले होते है तथा असत्य मार्ग का उपदेश देकर लोगों को कुमार्ग में प्रवृत करते हैं और इसी प्रकार दूसरे पापमय कार्य करते हैं, वे नरक अथवा तियंच का आयुष्य बांधते हैं । इसके विपरोत जो मिध्यादृष्टि जीव अल्पकषायी होते हैं, अकामनिर्जरा अथवा सकामनिर्जरा तथा विविध तप का आचरण करते हैं, वे मनुष्य अथवा देव का आयुष्य बांधते हैं। प्रश्न हो सकता है कि मिथ्यादृष्टि जीव को तरह सद्-अनुष्ठान से पंचमगुणस्थानवर्ती जीव मनुष्य का आयुष्य क्यों नहीं बांधते हैं ? उत्तर में कहा जा सकता है कि पंचमगुणस्थानवर्ती जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं । आगम में कहा गया है कि सम्यग्दृष्टि देव तथा नारको मनुष्यायु का बन्धन करते हैं तथा सम्यग्दृष्टि तियंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य केवल देव-वैमानिक देव के आयुष्य का हो बंधन करते हैं । अतः बालपंडित मनुष्य सिर्फ वैमानिक देव का आयु बांधते हैं। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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