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________________ ४५ जीव और जीव की कर्मजनित अवस्थायें पंचेन्द्रिय जीवों में भी जिन तिर्यञ्च जीवों में मन का अभाव होता है, उन्हें अमनस्क कहते हैं और शेष मन सहित जीवों को समनस्क कहते हैं। चतुरिन्द्रिय तक के सभी जीव अमनस्क ही होते हैं।' (ग) प्राणों के आधार पर जीवों का वर्गीकरण- . जीव में जीवितव्य के लक्षणों को प्राण कहते हैं ।२ गोम्मटसार में प्राणों की परिभाषा करते हुए कहा है - "जीवन्ति-प्राणति, जीवित व्यवहार योग्या भवन्ति जीवा: यैस्ते प्राणा:"३ अर्थात जिनके द्वारा जीव, जीवितव्य रूप व्यवहार के योग्य होता है, उन्हें प्राण कहते हैं। प्राण दसमाने गये हैं -पांच इन्द्रिय, मन-वचन और काय ये तीन बल, आयु और श्वासोच्छवास ।' एकेन्द्रिय जीव चार प्राणों को धारण करने वाले होते हैं, उनमें स्पर्शनेन्द्रिय, कायबल, आयु और श्वासोच्छवास पाया जाता है। वचनबल और रसना इन्द्रिय की वृद्धि हो जाने पर द्वीन्द्रिय जीवों में छह प्राण पाये जाते हैं। पांच प्राणधारी कोई भी जीव नहीं होता, क्योंकि रसना शक्ति के साथ ही बोलने की शक्ति भी द्वीन्द्रिय जीवों में आ जाती है । घाणेन्द्रिय की वृद्धि हो जाने पर, त्रीन्द्रिय जीव सप्तप्राणधारी हो जाते हैं, नेन्द्रिय युक्त होने से चतुरिन्द्रिय जीव अष्ट प्राणधारी होते हैं, श्रोत्रेन्द्रियं युक्त होने से पंचेन्द्रिय अमनस्क जीव नवप्राणधारी होते हैं और मनोबल सहित पंचेन्द्रिय समनस्क जीव दस प्राणधारी होते हैं।' (घ) काय की अपेक्षा जीवों का वर्गीकरण शरीर रूप परमाणु पिण्ड को काय कहते हैं। काय की अपेक्षा जीव छ: प्रकार के होते हैं। पृथ्वी कायिक अपकायिक, तेजकायिक, वायुकायिक, १. समणा अमणाणेया पंचिदिय णिम्मणा परे सव्वे, द्रव्य संग्रह, गाथा १२ २. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ३, पृ० १५३ ३. गोम्मटसार जीव कांड, जीवतत्त्वप्रदीपिका, गाथा २ ४. पंचेविदियपाणा मणवचिकायेसु तिण्णि बलपाणा। आणप्पाणप्पाणा आउगपाणेण होति दस पाणा । गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा १३० ५. सर्वार्थसिद्धि, पृ. १७२ ६. (क) गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्त्वप्रदीयपिका गाथा १३३ (ख) सर्वार्थसिद्धि, पृ० १७६ ७. शान्तिपथ प्रदर्शन, पृ०४४ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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