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________________ ३३ वस्तु स्वभाव जैन मान्य वस्तु स्वभावके द्वारा निर्गुण ब्रह्म और क्षणिकवादका भी खण्डन हो जाता है क्योंकि जैन दर्शनमें द्रव्य और गुणोंका ऐसा संबंध माना है, जो समकालीन समानता, एकता, असम्भव पार्थक्य और अनिवार्य सरलताका सूचक है।' . स्वचतुष्ट्य तथा अन्तिम इकाईके द्वारा पर्यार्यों की सूक्ष्मताका परिचय प्राप्त होता है, जैन मान्य पर्याय यद्यपि क्षणिकत्वकी सूचक है परन्तु यह क्षण स्थायी सत्ताको द्योतन नहीं करता । यह नित्य वस्तुकी केवल एक अवस्थाको ही प्रगट करता है, जिसमें वस्तुका नित्यत्व ओत-प्रोत है। इस प्रकार जैन दर्शन में वस्तुके एकान्त पक्षको न मानकर अनेकान्त पक्षकी स्थापना की गई है। __ जैन दर्शनानुसार उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य युक्त वस्तुको सत् माननेसे नित्यत्वके अविनाशी, अनुत्पन्न और स्थिर रूप लक्षणका निराकरण हो गया है क्योंकि उत्पाद और विनाश के रहते हुए भी जो अपने नित्यत्वको नहीं छोड़ता वही जैन दर्शनकी दृष्टिमें नित्य और सत् है। द्रव्यके बिना पर्याय और पर्याय के बिना द्रव्यका अस्तित्व कभी भी सम्भव नहीं होता द्रव्यं पर्यायवियुतं पर्याया द्रव्य वर्जिताः । क्व कदा केन किं रूपा दृष्टा मानेन केन वा ॥२ इस प्रकार द्रव्य पर्याय युक्त वस्तुको ही यर्थाथ सत्तामाना गया है । समस्त सत्ताको षड् द्रव्योंमें और षड् द्रव्योंको दो प्रकारके वर्गों में विभाजित किया गया है -जीव और अजीव । अजीव के पांच भेद हैं -पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल। समस्त समस्यायें जीव तथा अजीवके एक मानने के कारण ही उत्पन्न होती हैं और दोनोंके पार्थक्य से सब समस्याओं का समाधान हो जाता है।' ___ कर्म सिद्धान्त में कर्म विषयक समस्या भी जीव तथा अजीवके संयोगसे ही उत्पन्न होती है और जीव और अजीवके पृथक् हो जानेसे कर्म समस्याका भी समाधान हो जाता है। १. डॉ० राधाकृष्णन, भारतीय दर्शन, १९७३ , भाग १, पृ०२८८ २. स्याद्वाद् मंजरी, १९७९, पृ०१९ ३. जीवमजीवं दव्वं, द्रव्यसंग्रह, गाथा १ All problems arise from this union and are solved with their disunion जैन एथिक्स, पृ०५२ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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