SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४ जैन दर्शन में कर्म सिद्धान्त-एक अध्ययन बन्धकी अवस्थामें मोहनीयकर्म केवल मिथ्यात्व रूप ही होता है, परन्तु सत्त्वावस्थामें यह तीन प्रकारका हो जाता है। जिस प्रकार धानको चक्की पर दलनेसे चावल, कणी और भूसी तीन भाग हो जाते हैं | उसी प्रकार सम्यक्त्वके उन्मुख हुआ जीव जब मिथ्यात्वका दलन करता है, तो एक प्रकारका मोहनीय कर्म, तीन कर्म रूप परिणमित हो जाता है । इस प्रकार सादि सम्यग्दृष्टि जीवकी अपेक्षा दर्शनमोहनीयके तीन भेद हैं और अनादि मिथ्यादष्टि जीवकी अपेक्षा केवल एक मिथ्यात्व ही भेद है। सादिसे तात्पर्य है जिसका सम्यक् पथ प्रारम्भ हो चुका है। २. चारित्र मोहनीय कर्म आत्म स्वरूपमें आचरण करना चारित्र है, उसका घात करने वाला कर्म चारित्र .मोहनीय है ।२ पंचाध्यायीमें कहा है - कार्यम् चारित्रमोहस्य चारित्राच्च्युतिरात्मन: अर्थात् चारित्र मोहका कार्य आत्मा को चारित्र से च्युत करना है, क्योंकि कषायोंके उद्रेकसे ही आत्मा चारित्रसे च्युत होता है, कषायों के अभावमें नहीं । जैसा कि पंचाध्यायीमें कहा है - कषायाणामनुद्रेकश्चारित्रं तावदेव हि । नानुद्रेक: कषायाणां चारित्राच्च्युतिरात्मन:।' भेदप्रभेद चारित्र मोहनीय कर्म के दो भेद हैं । कपाय मोहनीय कर्म और नोकपाय मोहनीय कर्म । कषाय मोहनीय के सोलह भेद हैं और नोकपाय मोहनीय के नवभेद हैं | इन भेदोंका निर्देश कर्मग्रन्थ की गाथा में इस प्रकार किया गया है – "सोलस कसाय नव नो कसाय दुविहं चरितमोहनीय" । अणअप्पच्चक्खाणा पच्चक्खाणा य संजलणा॥" आगे चारित्र मोहनीय के इन पच्चीस भेदों का संक्षिप्त परिचय दिया जाता १. षटखण्डागम, धवला, १३/५, पृ० ३५८ २. कर्मग्रन्थ, प्रथम भाग, गाथा १३ ३. पंचाध्यायी उत्तरार्ध, श्लोक ६९० ४. पंचाध्यायी उत्तरार्ध, श्लोक ६९२ ५. कर्मग्रन्थ, प्रथमभाग, गाथा १७ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy