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________________ कर्म बन्धके कारण तथा भेदप्रभेद १२९ दर्शनावरणीय आवरण चतुष्क पांच निद्रा चक्षु अचक्षु अवधि केवल निद्रा निद्रा-निद्रा प्रचला प्रचला-प्रचला स्त्यानगृद्धि चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवल दर्शनको आवरण करने वाले कर्मों को दर्शनावरणी चतुष्क कहा जाता है। आगे प्रत्येककासंक्षिप्त परिचय देना आवश्यक १. चक्षुदर्शनावरण- आँखके द्वारा जो पदार्थों का सामान्य ग्रहण होता है, उसे चक्षु दर्शन कहते हैं । उस सामान्य ग्रहणको रोकने वाला कर्म 'चक्षुदर्शनावरण' कहलाता है | चक्षुदर्शनावरण कर्म के उदयसे एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय जीवोंको जन्मसे ही आँखें नहीं होती। पंचेन्द्रिय जीवों की आँखें भी इस कर्मके उदयसे नष्ट हो जाती हैं अथवा उनमें अनेक प्रकारके दृष्टि दोष उत्पन्न हो जाते हैं। २. अचक्षुदर्शनावरण- आँखको छोड़कर त्वचा, जीभ, नाक, कान और मनसे जो पदार्थों के सामान्य धर्मका प्रतिभास होता है, उसे 'अचक्षुदर्शन' कहते हैं। अचक्षुदर्शनको आवृत करने वाला कर्म 'अचक्षुदर्शनावरण' कहलाता है । इस कर्मके उदयसे जीवोंमें इन्द्रिय और मन संबंधी व्यापारकी शक्ति जन्मसे ही नहीं होती अथवा जन्मसे होने पर भी कमज़ोर अथवा अस्पष्ट हो जाती है । ३. अवधिदर्शनावरण- इन्द्रिय और मनकी सहायता के बिना ही, आत्माको रूपी पदार्थों के सामान्य धर्मका अवबोध कराने वाला अवधिदर्शन है । अवधि दर्शनको आवृत करने वाला कर्म 'अवधिदर्शनावरण' कहलाता है । ४. केवलदर्शनावरण- संसारके सम्पूर्ण पदार्थों का सामान्य अवबोध कराने वाला दर्शन केवलदर्शन है। केवल दर्शनको आवृत करने वाला कर्म 'केवलदर्शनावरण' कहा जाता है। ५. निद्रा-कर्मके जिस उदयसे ऐसी नींद आये कि सोया हुआ जीवथोड़ीसी आवाजसे ही जाग जाये, उस कर्मको निद्रा कहते हैं। १. (क.) चक्खूदिट्ठी अचक्खूसेसिदियओहिकेवलेहिं च । दसणमिह सामन्नं तस्सावरण तयं चउहा ॥ कर्मग्रन्थ, प्रथम भाग, गाथा १० (ख.) राजवार्तिक, पृ० ५७३ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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