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________________ ११८ जैन दर्शन में कर्म-सिद्धान्त-एक अध्ययन विभिन्न स्वभाव वाली प्रकृतियों को प्राप्त होकर ज्ञानावरणादि अनेक भेदों वाला हो जाता है। यदि प्रतिक्षण होने वाले परिणामों तथा क्रियाओंके आधारपर कर्म प्रकृतियोंकी गणना करें तो उनकी गणनासंभव ही नहीं है परन्तु आचार्योंने फलदान शक्तिकी विभिन्नताको देखते हुए अगणनीय कर्म प्रकृतियों का ज्ञानादि गुणोंको आवृत करने वाले, ज्ञानावरणादि अष्टविधकर्मों के द्वारा निर्देशन कर स्वभावोंकी विचित्रताका स्पष्ट दिग्दर्शन प्रस्तुत किया है । ज्ञानावरणादि अष्टविध कर्मों का बन्ध ही प्रकृति बन्ध कहलाता है।' ___रतनलालने अष्टविधकर्मबन्धके सामान्य स्वरूपका विवेचन करते हुए कहा है कि मनुष्य द्वारा खाया गया भोजन जिस प्रकार आमाशयमें जाकर पाचन क्रिया द्वारा रक्त मांस आदि सप्तविध धातुओं में परिवर्तित हो जाता है, उसी प्रकार जीवसे संबद्ध हुए कर्म परमाणुओंमें अनेक प्रकारकी कर्मशक्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। विभिन्न कर्म शक्ति युक्त परमाणुओंको मुख्यतया आठ भेदों में विभक्त किया जा सकता है। आठ भेदोंके उत्तर भेद करनेपर १४८ भेद हो जाते हैं । उनमें भी कुछ धातिया और कुछ अघातिया होते हैं । सर्वप्रकृतियों का पुण्य रूप और पापरूपमें भी वर्गीकरण किया जा सकता है। सर्व प्रकतियोंमें कुछ.पदगल विपाकी कुछ क्षेत्र विपाकी कुछ 'भव विपाकी और कुछ जीव विपाकी होती हैं।' आगे तालिकामें विभिन्न अपेक्षाओंसे कथित १४८ कर्म प्रकृतियोंका नाम निर्देशन किया गया है - 3. Subtle matter for instance is that matter which is transformed into the different kinds of Karman. Encyclopoadia of Religion and ethics vol I P. 468 २. “शक्तितोऽनन्तसंज्ञश्च सर्व कर्मकदम्बकम्" पंचाध्यायी, उत्तरार्ध, श्लोक १००० ३. "ज्ञानावरणाद्यष्टविधकर्मांतत्त्तद्योम्यपुद्गलद्रव्यस्वीकार : प्रकृतिबन्धः" नियमसार तात्पर्यवृत्ति, गाथा ४० ४. रतनलाल, आत्मरहस्य १९६१, पृ० १०० ५. ते पुण अट्ठविहं या अड़दालसयं असंखलोगे वा। ताण पुण घादित्ति अघादित्ति य होति सण्णाओ। गोम्मटसार कर्मकाण्ड, श्लोक ७ ६. तत्त्वार्थ सूत्र, अध्याय ५, सूत्र २५, २६ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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