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________________ कर्म बन्धके कारण तथा भेदप्रभेद ११५ संबंधित रागको “ इन्द्रियराग" कहा गया है और बाह्य पदार्थों में ममत्व होना प्रणय है । इस प्रकार प्रमादके सब मिलाकर पन्द्रह भेद कहे गये हैं। पंचसंग्रहमें इन पंद्रह भेदोंको गाथामें कहा गया है विका तहा कसाया इंदियणिद्दा तहेव पणओ य । चदु चदु पण एगेगं होंति पमादा हु पण्णरसा ॥ चार्ट द्वारा इन्हें निम्न रूपसे प्रदर्शित किया जा सकता है। - प्रमाद १५ विकथा ४ कषाय ४ स्त्रीकथा क्रोध राजकथा मान भोजनकथा माया चौरकथा लोभ - सवार्थसिद्धि, पृ० ३२१ सवार्थसिद्धि, पृ० ३२१ इन्द्रियराग ५ स्पर्श रसना घ्राण चक्षु कर्ण Jain Education International 2010_03 निद्रा १ ४. कषाय 1 कर्मबन्धका चतुर्थ कारण " कषाय" है । कषायको प्रमादमें भी गर्भित किया जा सकता है, क्योंकि प्रमादके भेदों में कषायको गिनाया गया है । क्रोधादि परिणाम आत्माको कुगतिमें ले जाते हैं, आत्माको कषते हैं अर्थात् आत्माके स्वरूपकी हिंसा करते हैं, इसीलिये इन्हें कषाय कहा जाता है । ३ ५. योग कर्मबन्धका पंचम कारण योग है । यहाँपर योगका अर्थ है- मन, वचन और कायकी क्रियायें । इन तीनोंकी क्रियाओंसे कर्मबद्ध आत्मा में पुनः पुनः कर्मों का संचय होता रहता है। योग दो प्रकारका होता है - कषाय सहित और कषाय रहित । कषाय सहित योग संसारका कारण होने के कारण साम्परायिक कहलाता है । सम्पराय संसारका पर्यायवाची है, ' संसारका हेतु होनेके कारण ही इसे साम्परायिक नाम दिया गया है। कषाय रहित योग ईर्यापथ नामके क्षणिक बन्धका कारण होता है। ईर्याकी व्युत्पत्ति ईरणं है, जिसका अर्थ है गति ।' ईर्यापथ बन्ध अगले क्षण १. गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा ३४ ५ २. पंचसंग्रह, प्राकृत, अधिकार १, गाथा १५ कषति हिनस्त्यात्मानं, राजवार्तिक, पृ० ५०८ ४. कायवाड्. मन: कर्मयोगः, तत्त्वार्थ सूत्र, अध्याय ६, सूत्र १ प्रणय १ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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