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________________ विमोक्ष २८९ ८१. इस प्रकार वह भिक्षु तीर्थकरों के द्वारा निरूपित धर्म को जानता हुआ शान्त, विरत और प्रशस्त लेश्या (विचारधारा) में नियोजित आत्मा वाला बने। ८२. [ग्लान भिक्ष प्रकल्प और प्रतिज्ञा का पालन करता हुआ यदि प्राण-विसर्जन करता है, तो उसकी वह काल-मृत्यु है। ८३. उस मृत्यु से वह अन्तक्रिया (पूर्ण कर्मक्षय) करने वाला भी हो सकता है। ८४. यह मरणप्राण-मोह से मुक्त भिक्षुओं का आयतन, हितकर, सुखकर, कालो. चित, कल्याणकारी और भविष्य में साथ देने वाला होता है। -ऐसा मैं कहता हूं। षष्ठ उद्देशक उपकरण-विमोक्ष ८५.'जो भिक्षु एक वस्त्र और एक पात्र रखने की मर्यादा में स्थित है, उसका मन ऐसा नहीं होता कि मैं दूसरे वस्त्र की याचना करूंगा। ८६. वह यथा-एषणीय (अपनी-अपनी कल्प मर्यादा के अनुसार ग्रहणीय) वस्त्र की याचना करे। ८७. वह यथा-परिगृहीत वस्त्रों को धारण करे-न छोटा-बड़ा करे और न संवारे। ८८. वह उन वस्त्रों को न धोए, न रंगे और न धोए-रंगे वस्त्रों को धारण करे । ८९. वह ग्रामान्तर जाता हुआ वस्त्रों को छिपाकर न चले। ९०. वह अल्प (अतिसाधारण) वस्त्र धारण करे। ९१. यह वस्त्रधारी भिक्षु की सामग्री (उपकरण-समूह) है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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