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________________ धुत २५३ १०५. दूसरों को बाधा न पहुंचाने वाला, जीवों की हिंसा का निमित्त बने [ऐसा उपदेश न देने वाला] तथा आहार आदि की प्राप्ति के लिए [धर्मकथा नहीं करने वाला]- महामुनि संसार-प्रवाह में डूबते हुए प्राणी, भूत, जीव और सत्त्वों के लिए वैसे ही शरण होता है जैसा [समुद्र में डूब रहे जल- यात्रियों के लिए] जल से अप्लावित द्वीप। कषाय-परित्याग धुत १०६. इस प्रकार [संयम-साधना के लिए उत्थित, स्थितात्मा, अपनी शक्ति का गोपन नहीं करने वाला, परीषह से अप्रकम्पित, कर्म-समूह को प्रकम्पित करनेवाला और अध्यवसाय को संयम में लीन रखने वाला मुनि [अप्रतिबद्ध होकर] परिव्रजन करे। १०७. दृष्टिमान् मुनि उत्तम धर्म को जानकर [विषय और कषाय को] शान्त करे। १०८. इसलिए (विषय और कषाय को शान्त करने के लिए) तुम आसक्ति को ' देखो।५ १०९. धन-धान्य आदि वस्तुओं में आसक्त और [विषयों में निमग्न मनुष्य काम से बाधित होते हैं। ११०. इसलिए मुनि संयम से उद्विग्न न हो। १११. जिन आरम्भों से ये हिंसक मनुष्य उद्विग्न नहीं होते, उन (आरम्भों) को सब प्रकार से, सर्वात्मना छोड़ देने वाला मुनि क्रोध, मान, माया और लोभ का वमन कर [मोह के बंधन को तोड़ डालता है] । * चूणिकार ने अणासादमाणे का अर्थ किया है-मुनि उस प्रकार का धर्म न कहे, जिससे प्राण, भूत, जीव, सत्त्व की आशातना हो । इसका वैकल्पिक अर्थ वह किया है, जो अनुवाद में स्वीकृत है---"अणासातमाणोत्ति तहा ण कहेति जहा पाणभूयजीवसत्ताणं आसायणा भवति, अप्पं वा, अहवा फम्मं कहेंतो ण किंचि आसादए अन्नं वा पाणं वा, जं भणितं--तदट्ठा ण कहेति । वृत्तिकार ने इसका अर्थ "दूसरे के द्वारा आशातना न कराता हुआ" किया है"परैरनाशातयन् ।" + विप्पिया-विग्यतत्ति (विघ्नता) विप्पितत्ति एगढ़-चूणि, पृ० २४२ । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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