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________________ 178 योगविन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन स्थिति है। वृत्तिसंक्षय के हेतु उत्साह निश्चय, धैर्य, सन्तोष, तत्त्वदर्शन तथा जनपद त्याग ये छः योग हैं जो कि वृत्तिसंक्षय के हेतु हैं। जब पूर्व वर्णित योग साधन स्वभावानुगत हो जाते हैं, स्वायत्त हो जाते हैं, तो आत्मा के कर्म बन्ध को योग्यता का अपगम हो जाता है, यही योगी का एकमात्र लक्ष्य है।" वृत्तिसंक्षय का परिणाम _वृत्तिसंक्षय से शैलेशी अवस्था की उपलब्धि होती है। इसमें मानसिक कायिक और वाचिक प्रवृत्तियों का सर्वथा निरोध हो जाता है और साधक की स्थिति मेरुवत् अकम्प अडोल हो जाती है तथा उसकी निर्बाध आनन्द विधायक मोक्षपद लाभ की स्थिति बन जाती है । इस प्रकार यह वृत्तिसंक्षय नाम का योग साधक को कैवल्य (केवलज्ञानदर्शन) तथा निर्वाण प्राप्ति के समय होता है। यद्यपि वृत्तिनिरोध ध्यान आदि की अवस्था में भी साधक प्राप्त कर सकता है किन्तु वह आंशिक ही होता है। सम्पूर्ण निरोध वृत्तिसंक्षययोग म ही निहित होता है। कैवल्य-अवस्था में अर्थात् तेरहवें गुणस्थान (सयोगी केवली की स्थिति) में भी विकल्परूप वृत्तियां क्षय हो जाती हैं फिर भी चेष्टारूप वत्तियों का आत्यन्तिक क्षय चौदहवें गणस्थान (अयोगी केवली अवस्था) में ही होता है । अतः वृत्तिसंक्षययोग तेरहवें तथा चौदहवें गुणस्थानों में हुआ माना जाता है । इस प्रकार वृत्तिसंक्षय के द्वारा कैवल्य प्राप्ति, शैलेषीकरण और मोक्षपद प्राप्ति---ये तीन फल साधना के (परिणाम) स्वरूप योगीसाधक को अधिगत होते हैं। १. मूलं च योग्यता ह्यस्य विज्ञेयोदितलक्षणा । पल्लवा वृतयश्चित्रा हन्त तत्त्वमिदं परम् ।। वही, श्लोक ४०६ २. उत्साहान्निश्चयाद् धैर्यात् सन्तोषात् तत्त्वदर्शनात् । मुनेर्जनपदत्यागात् षड्भिः योगः प्रसिद्धयति ॥ वही, श्लोक ४११ ३. यथोदितायाः सामग्रयास्तत्स्वभावनियोगतः । योग्यतापगमोऽप्येवं सम्यग्ज्ञेयो महात्मभिः ॥ योगबिन्दु, श्लोक २४ ४. अतोऽपि केवलज्ञानं शैलेशीसंपरिग्रहः। मोक्षप्राप्तिरनाबाधा सदानन्दधिधायिनी ॥ वही, श्लोक ३६७ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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