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________________ योगबिन्दु के रचयिताः आचार्य हरिभद्रसूरि देवों का प्रभाव, श्रमणधर्माचरण और कुमार्ग के दुष्परिणामों आदि अनेक विषयों पर प्रकाश डाला गया है । इससे सत्त्व का हेयोपादेयविवेकबोध की ओर अग्रसर होने की प्रबल प्रेरणा दी गई है । इसके अतिरिक्त प्रस्तुत ग्रन्थ में भारतीय संस्कृति, सामाजिक रीतिरिवाज एवं परम्पराओं का स्वरूप, नवान चेतना का विकास, तत्कालीन प्रचलित शिल्प, वर्ण्य प्रथा, कृषि, स्थापत्यकला और राजनैतिक, आर्थिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का वर्णन प्रसंगवश आ पड़ा है। देश-विदेश के सम्बन्ध, व्यापार, व्यापारमार्ग, उस समय के तपस्वी, साधु सन्तों के आचार-विचार एवं उनकी साधना की विविध प्रक्रियाओं एवं धारणाओं की सूचना का समराइच्चकहा अपने में एक प्रामाणिक दस्तावेज है । सम्पूर्ण ग्रन्थ पर जंतधर्म-दशन को छाप स्पष्ट झलकती है । इसका शोध परक अध्ययन भी किया जा चुका है जो उपलब्ध है । (२६) धूर्ताख्यान धूर्ताख्यान भारतीय वाङ् मय का अनुपम व्यंग्य प्रधान कथा ग्रन्थ है । कथानक अत्यन्त सरल एवं सरस है । हरिभद्रसूरि ने सीधी आक्रमणात्मक शैली में पांच धूर्तों के माध्यम से रामायण, महाभारत एवं पुराणों में उपलब्ध अप्राकृतिक, अवैज्ञानिक, अबौद्धिक, असम्भव तथा अकाल्पनिक मान्यताओं एवं प्रवृत्तियों पर तीव्र प्रहार किया है जिसे प्राणी के लिए तर्क की कसौटी पर कस कर नहीं समझाया जा तब उसका हल एक मात्र कथा और कथोपकथन ही रह जाता है जिनका कि आचार्यश्री ने धूर्ताख्यान में भरपूर लाभ उठाया है । सकता, I वीतरागी सन्त होते हुए भी उनके नारी जाति के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धाभाव थे । वे उसके विवेक चातुर्य से अत्यन्त प्रभावित थे । आश्चर्य नहीं, कि आख्यान के बहाने हरिभद्रसूरि ने नारी के धूमिल चारित्र को उजागर कर उसके आदर्श एवं सम्मान को और अधिक उन्नत बनाया है । इसकी झलक धूर्ताख्यान में आगत प्रासंगिक कथा से स्पष्ट मिल १. २. 99 समराइच्चकहा : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ०८ ० हरि० प्रा० क० सा० आ० परि०, पृ० १७० Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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