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________________ प्रकाशकीय अनंत उपकारी विश्ववत्सल श्रीअरिहंत परमात्माए स्थापेलो सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन अने सम्यक्चारित्ररूप मोक्षमार्ग आपणा सुधी पहोंच्यो छे. तेमां सौथी मोटो फाळो सुविहित आचार्य भगवंतादि मुनिपुंगवोनो छे. अनंत करुणानिधान श्रीतीर्थंकरदेवोए अर्थ द्वारा प्ररूपेलो, बीजबुद्धिना निधान श्रीगणधरदेवोए सूत्र द्वारा गूंथेलो श्रुतवारसो तेओए प्राप्त कर्यो एमां सम्यक् श्रद्धा करी हृदयमां स्थिर कर्यो, स्व-जीवनमां शक्ति अनुसार आचर्यो अने भाविना आत्मकल्याणकांक्षी आत्माओने ए श्रुतनुं वहेण अविरत मळ्या करे ए माटे सुयोग्य रीते ए वारसानो विनियोग पण कर्यो. श्रुत-विनियोगना अनेक प्रकारो पैकी 'शास्त्ररचना करवी' ए पण एक प्रशस्त प्रकार छे. श्रीगणधर भगवंतोए जेम द्वादशांगी आदि आगमग्रंथोनी रचना करी तेम त्यार पछी थयेला स्थविरभगवंतोए दशवैकालिकादि आगमग्रंथो अने अनेक शास्त्रोनी रचना करी. आगम अने पूर्वगत पदार्थोना भावोने विशिष्ट संकलनाथी संगत अर्थानुसंधान साधे गुंफित करी जुदा जुदा प्रकरण-ग्रंथोनुं निर्माण थयुं. आगमग्रंथो भणवा-भणाववानो अधिकार जेमने प्राप्त थयो नथी एवा श्रुतानुरागी सुयोग्य आत्माओ सुधी श्रीजिनोक्ततत्त्वनो प्रकाश सहेलाईथी पहोंची शके, ते द्वारा तेओ स्वात्मकल्याण साधी शके, आ आशय मां रहेलो हतो. आवो ज एक आगम-उपजीवी प्रकरण ग्रंथ छे 'हितोपदेशः ' तपागच्छाधिराज पूज्यपाद आचार्यदेव श्रीमद्विजय रामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजानी असीम कृपाथी आ ग्रंथनो प्रकाश जोवा श्रीसंघ सौभाग्यशाळी बन्यो हतो. तेओश्रीना विनेयरत्न वर्धमानतपोनिधि पू. आ. श्री विजय गुणयशसूरीश्वरजी महाराजना शिष्यरत्न प्रवचनप्रभावक पू. आ. श्री विजय कीर्तियशसूरीश्वरजी महाराजे एनुं संपादन करी मूळ गाथा अने भाषांतररूपे तैयार करी करावी श्रीनगीनभाई पौषधशाळा-पाटणना अन्वये वि. सं. २०३९ मां 'श्री हितोपदेशमाळा - श्रीदर्शनशुद्धि प्रकरणम्' नामे प्रकाशित कराव्यो हतो. आ ग्रंथनी अनेक स्थळे साक्षीओ मळे छे. पू. महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजे पण एनो आधार टांकेलो जोवा मळे छे. जैनशासनना अनेक महत्त्वपूर्ण पदार्थोनुं आधारभूत टंकशाळी निरूपण आ ग्रंथमां थयेल छे. आ ग्रंथनी 'टीका' अंगे तपास करतां पाटण श्री हेमचंद्राचार्य ज्ञानमंदिरमांथी एक सटीक अपूर्ण प्रत मळी आवी हती अने ते पछी बीजी एक प्रत अमदावाद हाजापटेलनी पोलना संवेगी उपाश्रयना ज्ञानभंडारमांथी मळी आवी जे संपूर्ण हती. आ बे प्रतना आधारे आ ग्रंथनुं संपादन करवामां आव्युं छे. Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002567
Book TitleHitopadesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhanandsuri, Parmanandsuri, Kirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year2009
Total Pages534
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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