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________________ १०६ कूर्मापुत्रचरित्र १९५. केवली के वचन सुनकर, कोई भव्य जीवों ने सम्यक्त्व को, कोई भव्य जीवों ने सर्वबिरति स्वीकार ली. या देशविरति कोंप्राप्त किया । १९६-१९७. इस प्रकार बहोत बहोत मानवों को प्रतिबोध देकर, केवली पर्याय (जीवनसमय) का पालन कर, कूर्मापुत्र केवलीआयु के पूर्ण होते ही शिवगति को प्राप्त हुए (१९७) केवलिप्रवर कूर्मापुत्र के ऐसे वैराग्योत्पादक चारित्र को, जो भव्यजीव सुनता है वह सर्व पापों से मुक्त हो - अनन्त सुख का पात्र बन जाता है । -- १९८. ' श्रीहेमविमल' नाम के शुभगुरु के शिष्य जिनमणिक्य (के शिष्यराज अनन्तहंस) के द्वारा इस प्रकरण की रचना हुई है जिसको पढ़ने से जय जयकार हो ... ॥ धर्मदेव - कूर्मापुत्रचरित्रसम्पूर्ण ॥ Jain Education International 2010_02 000 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002556
Book TitleSirikummaputtachariam
Original Sutra AuthorJinmanikyavijay
AuthorChandanbalashreeji
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages194
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size6 MB
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