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________________ १४ सो पण एसो भणिओ जिणेहिं जियराग-दोस [ पत्र ३, A ]मोहेहिं । व - सील- दाण - भावणभेएणं होइ चउहाओ ॥ तव - अणसमाईय तवो सीलं पुण होइ चरण- करणं तु । जीवदयाई दाणं अधुयाई भावणा हुंति ॥ धम्मो अत्यो कामो भण्णइ मोक्खो वि मीसगकहाए । एसा सा मीसकहा भणामि हं जिणवरे नमिउं ॥ २०॥ ग्रन्थ का अन्त भाग इय रिसिदत्ताचरिए पवरक्खरविरइ [ पत्र १५४, A ] ए वरे रंमे । गुणपालविरइयमिमं पंचमपव्वं समत्तं ति ॥ ज सेणिय पुट्टेणं जगगुरुणा साहियं ति वीरेणं । तह किंपि समासेणं मए वि किल साहियं एवं ॥ सोऊण तु एयं पालह जिणवीरभासियं वयणं । पावेह जेण अइरा कंमं डहिऊण मोक्खं ति ॥ इय कुणमाणेण इमं पत्तं जं किंचि एत्थ मे पुण्णं । पुणे ते पावह तुम्हे अरामरं ठाणं ॥ इय वीरभद्दसूरी नाइलवंसं [ पत्र १५४, B]......... इस के आगे का क्रमांक १५५ वाला ताडपत्र आधा तूट गया है । वाम भाग का आधा टुकड़ा उपलब्ध है जिसमें [A पार्श्व में] निम्न क्रम से आधी आधी पंक्तियाँ उपलब्ध होती हैं । पंक्ति १. पंक्ति २. पंक्ति ३. पंक्ति ४. Jain Education International 2010_02 ..[ गुणपा° ]लेणं विरइयं ति ॥ संसारि भमंतेणं जिणवयणं पाविऊण एयं नु । दुक्खहुएण रइ.. ******** . 'वहीणेण तह य लंकारवज्जिएण मए । किल किंपि मए रइयं जिणपवयणभ........ . 'णेण किं पि विवरीयं । तं खमियव्वं मह सुयहरेहिं सुयरयणकलिएहिं ॥ .. जिणपवयणं ताव । वरपउमपत्तयणा पड ...... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002554
Book TitleJambuchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2009
Total Pages318
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size12 MB
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