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________________ ३५ आधुनिक वृत्तान्त कर्मासाह के इस उद्धार के वर्णन की एक लंबी प्रशस्ति, इस महान मंदिर के अग्रिम द्वार पर, एक शिलापट्ट में ऊकीरी हुई है । यह प्रशस्ति कविवर लावण्यसमय की बनाई हुई और इस प्रबन्धकर्ता के हाथ ही की लिखी हुई है । इसमें, बहुत ही संक्षेप में, इस उद्धार का वर्णन लिखा हुआ है । प्रशस्ति के सिवा, भगवान आदिनाथ की और गणधर पुंडरीक की मूर्ति पर भी कर्मासाह के संक्षिप्त गद्यलेख हैं । ये सब लेख परिशिष्ट में दिये गये हैं । जो पाठक संस्कृत नहीं जानते अथवा जिन्हें केवल प्रबन्धान्तर्गत ऐतिहासिक भाग ही देखने की इच्छा हो उनके लिये इस 'उपोद्धात' के अगले ही पृष्ठ से 'शजयतीर्थोद्धार प्रबन्ध का ऐतिहासिक सारभाग' दिया गया है । इस सार-भाग में यथास्थान कुछ टिप्पणी भी अन्यान्य ऐतिहासिक ग्रन्थों के अनुसार लगा दी है । दूसरे उल्लास के प्रारंभ में अणहिल्लपुर स्थापक वनराज चावडे से लेकर शत्रुजयोद्धारक कर्मासाह तक के गुजरात के राजा-बादशाहों की सूची है । उनका विशेष वृत्तान्त जानने के लिये फार्बस साहब की 'रासमाला' या श्रीयुत गोविन्दभाई हाथीभाई देसाई रचित 'गुजरातनो प्राचीन अने अर्वाचीन इतिहास' नामक पुस्तक देखनी चाहिए । प्रबन्ध के अन्त में, स्वयं प्रबन्धकार ने एक 'राजावली-कोष्टक' दिया है, जिसमें द्वितीय उल्लासोल्लिखित नृपतियों ने कितने कितने समय तक राज्य किया था, उसका कालमान लिखा हुआ है । इसमें गुजरात के क्षत्रिय नृपतियों का जो कालमान है, वह तो अन्यान्य ऐतिहासिक लेखों के साथ सम्बद्ध हो जाता है, परन्तु मुसलमान बादशाहों के विषय में कहीं कहीं विसंवाद प्रतीत होता है । सिवा, इसमें दिल्ली के बादशाहों की भी नामावली और राज्यवर्षगणना दी हुई है, परंतु उनमें के कितने ही नामों का तो कुछ पता ही नहीं लगता है । जिनका Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002553
Book TitleShatrunjayatirthoddharprabandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2009
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tirth
File Size6 MB
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