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________________ २४ आधुनिक वृत्तान्त करते हैं, जिससे देखनेवाला क्षणभर मुग्ध होकर मंदिरों में विराजित मूर्तियों की तरह स्थिर-स्तंभित सा हो जाता है । जिस मंदिर पर दृष्टि डालो वही अनुपम मालूम होता है । किसीकी कारीगरी, किसीकी रचना, किसीकी विशालता और किसीकी उच्चता को देखकर यात्रियों के मुंह से ओ हो ! ओ हो ! की ध्वनियाँ निकला करती है । महाराज सम्प्रति, महाराज कुमारपाल, महामात्य वस्तुपाल-तेजपाल, पेथडशाह, समरासाह आदि प्रसिद्ध पुरुषों के बनाये हुए महान मंदिर इन्ही श्रेणियों में सुशोभित हैं । __ सर्व साधारण इन मंदिरों को देखकर जिस तरह आनंदित होता है, वैसे प्राचीन सत्यों को ढूंढ निकालने में अति आतुर ऐसी पुरातत्त्ववेत्ता की आंतरदृष्टि में आनंद का आवेश नहीं आकर नैराश्य की निश्चलता दिखाई देती है, यह जानकर अवश्य ही खेद होता है । यद्यपि ये मंदिर अपनी सुंदरता के कारण सर्वश्रेष्ठ हैं तो भी इनमें की प्राचीन भारत की आदर्शभूत शिल्पकला का बहुत कुछ विकृत रूप में परिणत हो जाने के कारण भारतभक्त के दिल में आनंद के साथ उद्वेग आ खडा होता है । कारण यह है कि यहां पर जितने पुराने मंदिर हैं, उन सबका अनेक बार पुनरुद्धार-संस्कार हो गया है । उद्धारकर्ताओं ने उद्धार करते समय, प्राचीन कारीगरी, बनावट और शिलालेखों आदि की रक्षा तरफ बिलकुल ही ध्यान न रखा । इस कारण, पुरातत्त्वज्ञ की दृष्टि में, इनमें कौन-सा भाग नया है और कौन-सा पुराना है, यह नहीं ज्ञात होता । संसार के शिक्षितों का यह अब निश्चय हो गया है कि, भारत की भूतकालीन विभूता का विशेष परिचय, केवल उसके प्राचीन धुस्स और पत्थर के टुकडे ही करा सकते हैं । ऐसी दशा में, उनकी अवज्ञा देखकर किस वैज्ञानिक को दुःख नहीं होता । * कर्नल टॉड यहां की प्राचीनता के विलोप में एक और भी कारण बडे दुःख के साथ लिखते हैं । वे कहते हैं - "(इस पर्वत की) प्राचीनता और पवित्रता के विषय Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002553
Book TitleShatrunjayatirthoddharprabandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2009
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tirth
File Size6 MB
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