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________________ १४ आधुनिक वृत्तान्त सन्दूकों में भर भर कर भेज दिये गये थे । जितने बचे हैं, वे इस मंदिर में- एक स्थान में, रक्खे हुए हैं । जिनको जरूरत होती है उन्हें, यदि योग्य समझा तो, मुफ्त दिये जाते हैं । __पर्वत के चढाव का वर्णन जैनहितैषी के सुयोग्य सम्पादक दिगम्बर विद्वान् श्रीयुत नाथूरामजी प्रेमी ने अपने एक लेख में, संक्षेप में परंतु बडी अच्छी रीति से, लिखा है जो यहां पर उद्धृत किया जाता है । ___ "इस टोंक को छोडकर कुछ ऊँचे चढने पर एक विश्रामस्थल मिलता है, जिसे 'धोली परब का विसामा' कहते हैं । यहां पानी की एक प्याऊ (प्रपा) लगी है । इस तरह के विश्रामस्थलों, प्रपाओं, कुंडों तथा जलाशयों का प्रबन्ध थोडी थोडी दूर पर सारे ही पर्वत पर हो रहा है । इन से यात्रियों को बहुत आराम मिलता है । धूप और शक्ति से अधिक परिश्रम से व्याकुल हुए स्त्री-पुरुष इस प्रपाओं के शीतल जल को पी कर मानो खोई हुई शक्ति को फिर से प्राप्त कर लेते हैं । इस प्याऊ के समीप ही एक छोटी सी देहरी है, जिसमें भरत चक्रवर्ती के चरण स्थापित हैं । इनकी स्थापना वि.सं. १६८५ में हुई है । इस तरह की हरियां जगह जगह बनी हुई हैं, जिनमें कहीं चरण ओर कहीं प्रतिमायें स्थापित हैं ।" __ "आगे एक जगह कुमारपाल-कुण्ड और कुमारपाल का विश्राम स्थल है । कहते हैं कि यह गुजरात के चालुक्य वंशीय राजा कुमारपाल का बनवाया हुआ है ।" । ___ "जब पर्वत की चढाई लगभग आधी रह जाती है, तब हिंगलाज देवी की देहरी मिलती है । यहां एक बूढा ब्राह्मण बैठा रहता है, जो बडे जोर से चिल्लाकर कहता है कि - "आदीश्वर भगवान के इतने करोड पुत्र सिद्धपद को प्राप्त हुए हैं," और देवी को कुछ चढाते जाने के लिये सब को सचेत करता रहता है । भोले लोग समझते ___Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002553
Book TitleShatrunjayatirthoddharprabandha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherShrutgyan Prasarak Sabha
Publication Year2009
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Tirth
File Size6 MB
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