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________________ ३८ १२. सर्व अल रहने में समर्थ व्यक्ति के लिए कटिबंध का निषेध ११३-११४. अचेल का लाघव और तप ११५. अचलत्व का पालन और समता ११६- १२४. वैयावृत्य का कल्प ११६. भोजन के आदान-प्रदान की प्रतिज्ञा ११७-१२३. आहार के आदान-प्रदान के विविध विकल्प तथा उपकार और निर्जरा की दृष्टि से सेवा करने का प्रतिपादन १२४. आहार का संवर्तन और समाधि मरण के लिए उत्थान १२५-१३०. प्रायोपगमन अनशन १२५. प्रायोपगमन अनशन की विधि १२६. प्रायोपगमन अनशन का अधिकारी १२७-१३०. इस मरण से मरने वाले की साधना का फलित इंगिनीमरण अनशन गाथा १. समाधिमरण कब ? उसकी अर्हता के तीन बिन्दु २. बाह्य और आंतरिक बंधन के हेतुओं को अवगति • जीवित रहने से अधिक लाभ या शरीर विमोक्ष से ? ● किस समाधिमरण के योग्य है मेरा सामर्थ्यइसकी समीक्षा ० • पर्यालोचनपूर्वक प्रवृत्ति की अल्पता ३. कषाय का कृशीकरण और आहार का अल्पीकरण ४. जीवन और मरण में अनासक्त ५. मध्यस्थ और निर्जराप्रेक्षी बनकर समाधि का पालन • आंतरिक और बाह्य व्युत्सर्ग ६. संलेखनाकालीन आकस्मिक बाधा के समय भिक्षु का कर्त्तव्य भक्त-प्रत्याख्यान ७. स्थानशुद्धि का निर्देश । अनशन के स्थान में स्वयं या प्रातिचारक भिक्षुओं के साथ ० स्थंडिल प्रतिलेखना की प्राचीन परंपरा ८. भूख, प्यास तथा अन्य परीषहों को सहने की शक्ति के विकास का निर्देश ९-१०. प्राणियों के विघात को सहने का आलंबन-सूत्र ११. द्रव्यग्रन्थ और भावग्रन्थ • भक्तप्रत्याख्यान अनशन की अपेक्षा इंगिनीमरण अनशन प्रशस्ततर, कष्टतर आदि Jain Education International आचारांग भाष्यम् १२. इंगिनीमरण अनशन में चतुविध आहार का परित्याग तथा आत्मवर्ज प्रतिचार का निषेध १३-१८. इंगिनीमरण अनशन में मुनि की चर्या तथा निषद्या विषय चूर्णि की परंपरा और परीषद् सहन का निर्देश प्रायोपगमन १९. प्रायोपगमन अनशन की श्रेष्ठता, स्थान से विचलन का प्रतिषेध तथा साधक की स्थिति का चित्रण २०. इंगिनीमरण अनशन की अपेक्षा यह अनशन प्रधान और उत्तम ● जिस आसन में अनशन स्वीकार उसी में निश्चल रहने का निर्देश २१. प्रायोपगमन अनशन को स्वीकार करने वाले की चर्या तथा इस अनशन की मुद्राओं का निर्देश और अनशन का पार पाने के लिए आलंबन - सूत्र का प्रतिपादन २२-२३. अनशन स्वीकर्त्ता को स्थिर रहने का निर्देश • अनशन में होने वाले उपद्रवों से सावधानता • इच्छालोभ का निराकरण २४. दिव्य भोग के निमन्त्रण को ठुकरा देने का निर्देश तथा दिव्य माया के प्रति न झुकने का आग्रह २५. अनशनपूर्वक जीवन की समाप्ति कल्याणकारक नौवां अध्ययन (पहला उद्देशक ) १- २३. भगवान् की चर्या For Private & Personal Use Only १. प्रव्रज्या के पश्चात् तत्काल विहार हेमन्त ऋतु में मुगसिर कृष्णा दसमी के दिन दीक्षा २. दीक्षा के समय एक शाटक • भगवान् की धर्मानुगामिता • ग्रीष्म में एक शाटक या अचेल की परंपरा का उल्लेख ३. भगवान् का शरीर अद्भुत गंधयुक्त । द्रव्यकृत परिमल की विशेषता । परिमल के लिए भ्रमरों का उत्पात | अभिनिष्क्रमण के चार मास तक ४. तेरह मास पश्चात् भगवान् अ बने ५. भगवान् की अनिमेषदृष्टि ध्यान की सूचना • तियंभित्ति ध्यान की प्रक्रिया ६. एकान्त में ध्यानलीन और वहां स्त्रियों का उपद्रव www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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