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________________ मूल सूत्र तथा भाष्यगत विषय-विवरण पहला अध्ययन सूत्र १-४. आत्मा का अस्तित्व • पूर्व जन्म और पुनर्जन्म का निषेध • पूर्वजन्म और पुनर्जन्म का संज्ञान • आत्मा औपपातिक-पुनर्जन्मधर्मा है या नहीं ? • पूर्वजन्म-पुनर्जन्म के संज्ञान के तीन हेतु ० पूर्वजन्म की स्मृति के निमित्त--- ० मोहनीय का उपशम ० अध्यवसायशुद्धि • ईहापोहमार्गणगवेषणा • तदावरणीयकर्म का क्षयोपशम • जाति-स्मृति की इयत्ता • जाति-स्मृति सबको क्यों नहीं? • संज्ञा-ज्ञानसंज्ञा अनुभवसंज्ञा • 'सोऽहं' आत्मा का लक्षण ० दिग्-अवबोध ५. चार वाद-आत्मवाद, लोकवाद, कर्मवाद,क्रियावाद ६. आस्तव • क्रिया से कर्मबन्ध, कर्मबन्ध से भव-संचरण ० क्रिया के नौ प्रकार ० क्रिया का अपर नाम आस्रव ७. संवर ० कर्म समारम्भ की परिज्ञा ० परिज्ञा का बोध ८. परिजातकर्मा • पूर्वजन्म की स्मृति से परिज्ञातकर्मा की दिशा में प्रस्थान • क्या कर्म-त्याग संभव है ? । • करणीय-अकरणीय का विवेक • संयमपूर्वक किया गया कर्म अकर्म कहलाता है ९-१०. प्रवृत्ति के स्रोत • सात मौलिक मनोवृत्तियां जिजीविषा, प्रशंसा, मानन, पूजन, जन्म-मरण, मोचन, दुःख का प्रतिघात । ११-१२. संवर की साधना • सभी कर्म-समारम्भ परिज्ञातव्य • कर्म का अर्थ प्रवृत्ति ० परिज्ञातकर्मा-गीता और महावीर के अनुसार ० मुनि और पण्डित की एकवाच्यता १३-१४. अज्ञान • हिंसा में कौन प्रवृत्त होता है ? • चार प्रकार के पुरुष हिंसा में प्रवृत्त होते हैं। १५-२७. पृथ्वीकायिक जीवों को हिंसा १५. पृथ्वीकायिक हिंसा के दो कारण -मरणभय तथा विषयाकुलता १६. पृथ्वी जीवों का अस्तित्व स्वतंत्र प्रत्येकशरीरी जीव • पृथ्वी की सजीवता : महावीर का नया पक्ष • प्रस्तुत अध्ययन में मनुष्य की विवक्षा न कर पहले पृथ्वी आदि प्राणियों की विवक्षा क्यों ? १७-१८. गृहत्यागी भी पृथ्वीजीवों की हिसा से विरत नहीं, यह महान् आश्चर्य। १९. पृथ्वी-जीवों की हिंसा करने वाला अन्यान्य जीवों का भी हिंसक • शस्त्र की परिभाषा तथा भेद • द्रव्यशस्त्र के तीन प्रकार २३. हिंसा से अहित और अबोधि । २४. हिंसा और उसके परिणाम को जानने वाला ही संयम के प्रति उत्थित । ० आदानीय का अर्थ संयम २५. हिंसा ग्रन्थि है, मोह है, मृत्यु है, नरक है। २६. सुख-सुविधा में मूच्छित व्यक्ति हिंसा में प्रवृत्त २७. पृथ्वी-जीवों की हिंसा करने वाला अन्य जीवों का भी हिंसक। २८-३०. पृथ्वीकायिक जीव का जीवत्व और वेदना-बोध २८. इनके जीवत्व में अतीन्द्रिय ज्ञान ही प्रमाण • जीवत्व संसिद्धि में पूर्वाचार्यों की युक्तियां • जीवत्व संसिद्धि में भूवैज्ञानिकों का मत • पृथ्वी के जीव में चैतन्य ही नहीं, उसमें ... श्वासोच्छवास, करण, वेदना, शरीर की अवगाहना, दृश्यता, भोगित्व, आश्रव आदि, जरा और शोक, उन्माद, संज्ञा, ज्ञान, आहारार्थिता, पर्यव, इन्द्रियज्ञान से अज्ञेयता, कषाय, लेश्याइन सोलह तथ्यों का अस्तित्व है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002552
Book TitleAcharangabhasyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Research, & agam_acharang
File Size14 MB
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