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________________ है; न सर्वत्र साधु होते है, न प्रत्येक वन चंदनका होता है। अतः प्रत्येक जीव मनुष्य नहीं होता, न प्रत्येक मनुष्य संत होता है; सभी संत सच्चे साधुत्वयुक्त नहीं, न सभी सच्चे साधु सदैव युगनिर्माण कर सकते हैं। लाखों-क्रोडोंमें एक होता है 'नवयुग निर्माता', जो स्वात्म कल्याणके साथसाथ निःस्वार्थ भावसे परोपकारमें अहर्निश मशगूल रहें ताकि सामान्यजनोंकों अंधकारसे प्रकाशकी ओर, अज्ञानसे ज्ञानकी ओर, अधःपतनसे उत्थानकी ओर, एवं उत्क्रांतिसे संक्रातिकी ओर अग्रसर होने की प्रेरणा दे सकें। नवयुग निर्माता---जिस समय सभी गहरी निंदकी मदहोशीमें मस्त होते हैं, वह मार्गका निर्माता, पथप्रदर्शक और जन साधारणका नेता-सर्वतोमुखी प्रतिभाका स्वामी, सत्य क्रान्तिका मशालची, तत्कालीन युगका महारथी-मानों अंधकारकी काजलकाली कादम्बरीमें अपने सात्त्विक एवं आत्मिक शस्त्रों पर पानी चढ़ाता रहता है; क्योंकि केवल तत्त्वज्ञानी या उपदेशक 'नवयुग निर्माता' नही बन सकता। श्री सुशीलजीके शब्दों में- “ऐतिहासिक प्रमाणकी आवश्यकता पर इतिहासका भंडार खोल दें, शास्त्रीय युक्तियाँ या न्याय विषयक जरूरत पड़े तो शास्त्रीय एवं न्यायकी तर्कवद्ध-अकाट्य पंक्तियाँ सम्मुख रखें; तुलनात्मक शैलीसे यदि किसी नवीन रचना निर्माण करनी पडे तो भी वह पीछेहट न करें; सामान्य जन देख सकें ऐसी विधि-आचार-मर्यादा और अन्य क्रियाओंमें सबके अग्रणी रहें - वही नूतन और पुरातन युग मध्य अटूट सेतु बन सकता है या नवयुगको निमंत्रण दे सकता है ।"७९ समाज कल्याणके साक्षात अवतार---नूतन धार्मिक उत्क्रान्तिसे गठित हुआ आपका जोशीला व्यक्तित्व, तत्कालीन राष्ट्रीय-सामाजिक-धार्मिक अशांति, अविश्वास, अव्यवस्थाके फलस्वरूप व्युत्पन्न हिंसाके तांडवसे संत्रस्त हुआ। यतिवर्ग-संविज्ञ साधु और ढूंढ़क आम्नायों के मध्य, कुसंप-शिथिलाचारशास्त्रीय उटपटांग विचार-आचारोमें गोते खा रही अबूध-जैन जनताको देखकर श्री आत्मारामजीकी अंतरात्मा जैसे चित्कार कर उठी। उसी कसकने आपको कमर कसने पर मज़बूर किया। आपने प्राणोंसे प्रिय-संपूर्ण सत्य स्वरूप-जिनशासन और उसके अनुयायी वर्ग-जैनों के उद्धारमें अपने जानकी बाज़ी लगा दी। एक अति ही सुव्यवस्थारूढ़ सुधारक-क्रान्तिकार-युगनिर्माताके रूपमें हमारे सामने पेश होते हुए आपने एलान किया, “रूढियोंको में तपागच्छकी समाचारी माननेको तैयार नहीं हूँ"।" श्री पोपटलाजी के शब्दोमें “आत्मारामजीने खास नया कुछ नहीं किया, पर पुराने-अच्छेको संभालकर, निरर्थक और निर्वलको तोड़कर उसके स्थान पर नया बांधकाम आवश्यकतानुसार कर लेने का सवल प्रयास किया है।८१. एक महान विप्लववादी सदृश गतानुगतिक संकुचितता और व्हेम, अचलासनारूढ एवं प्राणशोषक कुरूढियाँ व गलत मान्यताओंके गहन अंधकारको आपने अनेकानेक शास्त्राधारित युक्तियुक्त प्रमाणोंसे भरपूर शुद्ध शाश्वत धर्मके सिंहनादसे विदारा-मानो एक कुशल सर्जन डॉक्टरने जैन समाजके सड़ित-गलित अंगोंका ओपरेशन करके एक मृत-तुल्य मरीज़को उबार लिया अथवा जैसे किसी निष्णात इन्जिनियरने जर्जरित ऐसे जैन सामाजिक महलके तूटे-फूटे खंडहरको गिराकर उसी मज़बूत नींव पर नवनिर्माण किया और 'कथिरसे कंचन' करनेकी कलायुक्त, अजीबोगरीब नूतन कलाकारने सुंदर सदन सजाने की भरसक कोशिश की। जैनोंको स्वकर्तव्य सन्मुख होना सिखाया। जैनोंकी पतितावस्थाका मूल और गूढ कारण व्यक्त करते हुए आपने अपने 'अज्ञान तिमिर (B) Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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