SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छलछलाता हृदयकमल सुद्दढ एवं मज़बूत भुजायें, प्रबल पुण्य प्रभावसे शोभायमान चूम्बकीयचमत्कारिक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व बाह्य रूपरंगकी आभा बिखेर रहा था तो आजीवन सत्य भेखधारीकी सत्यके ही मूर्तिमंत स्वरूपमें, जन्मजात नेतृत्वकी झलकती और छलकती दिलेरी एवं मर्दानगी युक्त रोम-रोममें निवसित क्षात्रवट, साहसिकता, निर्भीकता, सहनशीलता, गंभीरता, धीरता एवं वीरताके साथ वाक् संयमितता, दृढ़ता, उदारता, दया करुणा और परोपकार परायणतादि अंतरंग गुणयुक्त आध्यात्मिक सुमन समूहोंकी सुवास सर्व जन मनको आह्लादित कर रहीं थीं । धार्मिक व्याप और जैन मुनिसे परिचय-- ऐसे होनहार वीर बालक देवीदासने जैनधर्म संस्कार युक्त धर्मप्रेमी जोधाशाहजीके परिवारके अहिंसक संस्कार रश्मियोंको झेलना सिखना प्रारम्भ किया। शनैः शनैः देवीदासके कोरे कागज जैसे निर्मल स्वच्छ मानस पट पर सामायिक प्रतिक्रमणादि धार्मिक अनुष्ठानोंका सुरुचिपूर्ण अंकन होने लगा। लहराके ग्रामीण वातावरणमें से बाहर आकर जीरामें लालाजीके घर सुंस्कारोंकी सुवास पाकर देवीदासका अंतरपट बाग-बाग हो गया। घरके वातावरणके स्वाभाविक प्रभावसे वे कैसे वंचित रह सकते थे? यहीं पर ही उनके हृदयकी हलचलसे तरंगित मनोवृत्तियों को उचित मार्गदर्शन मिला। लालाजी से कुछ व्यावहारिक एवं व्यापारिक शिक्षा प्राप्त होने लगी और उधर आवागमन करनेवाले व चातुर्मास बिराजित जैन मुनियों से धार्मिक अभ्यासमें प्रगति होने लगी। देवीदासने नवतत्त्वादिके ज्ञानार्जनके साथसाथ उन मुनिराजोंके सहवासमें आत्मिक जागृतिका अनुभव किया। वैराग्य गर्भित देशना प्रवाहोंके शीतल पानसे अद्यावधि किया हुआ ज्ञानाभ्यास आत्म चितनकी धाराको सबल करने लगा। फल स्वरूप विषैले, अस्थिर असार संसारके प्रति इस नवयुवकके मनमें निर्वेद पनपने लगा संसार के प्रति निर्लेपता, उदासीनता और संयम प्रति झुकाव बढ़ने लगा। " १९ संसार त्याग भावना-चिन्तनके इस आलोडनमें उन्होंने आलोकित किया क्या ? संसारका मार्ग सरल है- जीवन यापनके लिए ठीक है, लेकिन लक्ष्य बिन्दुकी प्राप्ति करानेवाला तो त्यागका कठिन मार्ग ही है। जीवन युद्धमें बल और साहस आवश्यक है, लेकिन, युद्धमें क्रूर हिंसक अनेकोंके प्राणनाशक विजय सच्ची है अथवा अंतरमनकी बुराइयों पर विजयी बनना - सच्ची वीरता है ? शाश्वत सुख किससे ? हिंसक युद्ध विजयसे या इन्द्रिय दमनसे विषय वासना पर विजय प्राप्त करवानेवाले अहिंसक युद्धसे? अंततः आपने पाया शांतिप्रद आध्यात्मिक आनंद क्या है कहाँ है कैसे प्राप्त किया जाय ? - Jain Education International उनके चित्तप्रदेशके चिंतन कुसुमोंने त्याग मार्गकी सुवाससे अपने दिल-दमागको पूरित कर दिया- सारे जीवनको सुवासित कर दिया। फलस्वरूप त्यागमार्ग अंगीकार करके साधुजीवन स्वीकृत करनेका दृढ़ अटल-अविचल निश्चय कर बैठे। न चलित कर सके उसे स्नेह और वात्सल्यभरे जोधाशाहजीकी लखलूट संपत्ति या सांसारिक, वैवाहिक, वैभविक लालचके बंधन " एवं न रोक सकी ममतामयी माताकी दिलकी, मातृऋणका बदला चूकानेके कर्तव्यकी पुकार अथवा अविरत बहनेवाली अश्रुधाराकी फिसलानेवाली जंजीर १२ आपको तो श्रेयस्कर था केवल स्व पर आत्म 55 - For Private & Personal Use Only 7 www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy