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________________ निरुत्तर करनेकी, उनमें शक्तिथी-परास्त करनेकी; बरसता था नूर-उनके चेहरे पर; बरसतीथी पियूषधारा उनके मुखारविंदसे; लग जाती थी झड़ी अनेक युक्ति प्रमाणोंकी- जब वे व्याख्यान देते थे; झुकते थे जाने-अनजाने, चरणोंमें-जब दिखतीथी दिव्यमूर्ति चली जाती.......जिस दीर्घ नयन, विशाल ललाट और देव स्वरूपकी यह मनोहर छबी है वह जरूर धर्ममूर्ति,सत्य वक्ता, परम साहसी, निर्भीक, विशेषज्ञ, विद्वान शिरोमणी, परम पुरुषार्थी, बाल ब्रह्मचारी, दूरदर्शी, विद्यावारिधि, अनेक गुण निधान, धीर, वीर, गंभीर और अवतारी पुरुष है । और अब उपलब्धि कराती हूँ श्रेष्ठ 'आत्मा' के विश्व स्तरीय श्रेष्ठतम सम्मानकी, जिससे उनके प्रति मस्तक श्रद्धासे अवनत और गौरवसे उन्नत हो जाता है--- "No man has so peculiarly identified himself with the interests of the Jain community as Muni Atmaramji. He is one of the noble band sworn from the day of initiation of the end of life to work day and night for the high mission they have undertaken. He is the higest priest of the Jain community and is recognised as the highest living authority on Jain religion and literature by Oriental Scholars-" 8 आबाल्यकाल सत्तर सालके अध्ययन पश्वात् पांडित्य-कीर्तिलाभ द्वारा सभा-विजयी और राजामहाराजाओंसे ख्याति-प्रतिपत्ति कमानेवाले दिग्गज विद्वान श्रीमान् परिव्राजक योगजीवानंद स्वामी परमहंसजी, सत्यही आत्मा है जिसकी-ऐसे सर्वोत्कृष्ट जैनाचार्य श्रीमद्विजयानंद सुरीश्वरजीके प्रभावपूर्णसत्यसारभूत उत्तम ग्रन्थरत्न- 'जैन तत्त्वादर्श 'और' अज्ञान तिमिर भास्कर के वाचन-चिंतन-मनन से अभिभूत होकर अत्यंत विनयपूर्वक प्रणिपात करते हुए, अपनी लेखिनी के उत्तम प्रशस्ति-पुष्योंकी माला समर्पित करके निजात्माको कृतकृत्य मानते हैं-यथा “योगा भोगानुगामी द्विजभजनजनिः शारदारक्तिरक्तो, दिग्जेताजेतृजेता मतिनुतिगतिभिः पूजितोजिष्णुजिहवः । जीयाद्दायादयात्री, खलबलदलनो, लोललीलस्वलज्जः, कैदारीदास्यदारी, विमलमधुमदो, हामधामप्रमत्तः ।" " कलकत्ताकी रोयल एशियाटिक सोसायटीके ओन. सेक्रेटरी और श्री ‘उपासक दशा' आगम सूत्रके अनुवादक-सम्पादक एवं संस्कृत-प्राकृतके विद्वान--डॉ.ए.एफ.रुडोल्फ होनल-ने आपके प्रश्नोत्तर रूप मार्गदर्शनसे प्रभावित होकर अपने 'उपासक दशा' (आगम सूत्र)सम्पादित ग्रन्थको, आप के प्रति श्रद्धायुक्त समर्पित करते हुए उस समर्पण पत्रिकामें जो भावोद्गार भरते हैं-हदयस्पर्शी हैं. “दुराग्रह ध्वान्त विभेदमानो, हितोपदेशामृतसिन्धुचित्तः संदेह संदोह निरासकारिन्, जिनोक्त धर्मस्य धुरंधरोऽसि “अज्ञान तिमिर भास्करमज्ञान, निवृत्तये सहृदयानाम् आर्हत् तत्त्वादर्शग्रन्थमपरमपि भवानकृत् ।। "आनन्द विजय श्रीमन्त्रात्माराम महामुने (१) 490 Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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