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________________ विचरण करके, धर्मसभाओंमें और व्यक्तिगत चर्चाओंसे धार्मिक वादविवाद और मतभेद उपशांत किये। पुनः वी.सं २३९९में गुजरात पधारें। तदनन्तर पू. आत्मारामजी महाराजने सोलह साधुओं के साथ आपका शिष्यत्व स्वीकार किया, जो प्रसंग अपने आपमें ऐतिहासिक सिद्ध हुआ। श्री बूटेरायजी म. जैसी अप्रतिम प्रतिभा और अनूठी व अद्वितीय प्रभावकता तत्कालीन समाज़में बेमिसाल थी। उन्होंने अपने शिष्य पू. श्री मूलचंदजी म. को गुजरात, पू. श्री वृद्धिचंद्रजी म. को सौराष्ट्र, पू. श्री आत्मारामजी म.को पंजाब और पू. श्री नीतिविजयजी म. को सुरतादि दक्षिणके प्रदेशोंका विचरण करवाके विशाल परिवार सम्पन्न करने में सफलता पायी। सत्यवीर महायोगी, साम्प्रत संघनायक और अपने चरित्र नायक श्री आत्मारामजी म.के प्राणाधार वी.सं. २४०८में कालधर्म प्राप्त हुए। निष्कर्ष---इस प्रकार शाश्वत जैन धर्मके शाश्वत सिद्धान्तोंके प्ररूपकों और प्रचारकों-प्रसारकों में चौबीस तीर्थंकरोंकी परम्परामें अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी और उनकी परम्परामें (पट्टावली) पट्ट परम्पराके निर्देशानुसार परम पूज्य न्यायाम्भोनिधि, सत्यकी साक्षात् प्रतिमूर्ति, विद्वद्वर्य श्रीमद्विजयानंद सुरीश्वरजी (श्री आत्मारामजी) महाराज साहबजीका स्थान कहाँ-कैसा-कितना महान है उसका अत्यन्त संक्षिप्त परिचय प्राप्त किया। अब आपका जीवन-चरित्र प्रकाशित करनेकी ओर अग्रसर होंगे। (47) Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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