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________________ जन्मलग्न कुंडलीकी प्रामाणिकता ये और ऐसे ही धैर्य- गांभीर्य चातुर्य नम्रता- दृढ़संकल्पबल-प्रगल्भ असाधारण ज्ञानादि अनेकानेक गुणालंकृत आचार्य भगवंतकी जन्म कुंडली पर ज्योतिष्चक्र के परिवेशमें दृष्टिक्षेप करनेसे हमें अभिज्ञात होता है-उनके समस्त दृश्यादृश्य-जीवन-दृश्योंका चित्रांकन; अथवा जैन सिद्धान्तानुसार पूर्वोपार्जित कर्मसंचयों के विपाकोदयकालीन विविधरंगी, विस्मयकारी आलेखनके रूपमें उनकी जीवन शोभाका प्रदर्शन! सामान्यतः ग्रहशून्य केन्द्रवाली-अत्यन्त सर्व साधारण दृश्यमान उस जन्म लग्न कुंड़लीको उत्कृष्ट असाधारणत्व प्रदान करनेवाला लग्न है - कुंभ राशि है- मेषः ग्रह है- योगकारक उच्चका शुक्र, बलवान सूर्य, उच्चका गुरुः सम्बन्ध हैं- शनि चंद्रकी प्रतियुति, शुक्र-सूर्य एवं मंगल-गुरुकी युति, ग्रहोंका परस्पर या एकतर दृष्टिसंबंधोंका प्रभाव कुंड़ली स्थित विशिष्ट योग-रचना हैं-शंखयोग, नीचभंग राजयोग, गज केसरीयोग, परिवर्तन योग, पारिजात योग, केदार योग, उपचय योग, नव-पंचम योग आदि । इनके अतिरिक्त भाग्यभुवनमें केतुकी शनिके साथ युति संबंध पितृसुखसे वंचित करता है, तो भाग्येश योगकारक शुक्र उच्चका बनकर सूर्य-बुधकी युतिसंबंध से युक्त धनभुवनमें बिराजित होनेसे भाग्यदेवी विजयमालारोपण के लिए सदैव तत्पर रही है। इस प्रकार आपके जीवनके कार्यकलापका प्रकाश, ज्योतिष शास्त्रके परिवेशमें उनकी जन्म लग्न कुंडलीके अध्ययनसे उस प्राप्त कुंडलीकी सत्यताको प्रमाणित करता है । : जैनाचायका परिचय-पत्र जिनपद तुल्य, साम्प्रतकालमें जैनधर्मका सर्वश्रेष्ठ सम्माननीय श्रद्धा, भक्ति, आदरका अनन्य स्थान पंच परमेष्ठिमें मध्य स्थान स्थितः जिम्मेदारी युक्त जिनशासनके वफादार सेवक: पंचमहाव्रतधारीत्रिकरण योगसे (इन्द्रिय दमन पूर्वक) सर्व सावद्य प्रवृत्तिके परिहारी सकल विश्ववात्सल्य वारिधि विश्वशांतिके अग्रदूत-करुणासिंधु-जीवमात्रके - जगज्जनोंके तारक-तरणिः सदाचारी, समभाव समुपासक, कलुषित कषायके त्यागी, विशिष्ट सद्गुणोंसे विभूषित विविध देशाचार विज्ञ, विभिन्न धर्मके भिन्नभिन्न भाषाकीय, वैविध्यपूर्ण वाङ्मयके अभिज्ञाता, स्व-पर सिद्धान्तयुक्त जिनवाणीके तात्त्विक बोधमयी प्रवचन पीयूषधाराके प्रवाहक-प्रवचन प्रभावक श्री वज्रस्वामी सदृश; संवेग-निर्वेदजनक प्रशस्त धार्मिक कहानियोंसे ओतप्रोत धर्मकथा द्वारा शासन प्रभावना करनेवालेधर्मकथा प्रभावक श्री सर्वज्ञ सूरि श्री मंदिषेण सूरी आदि सरिखे सर्वत्र सर्वदा विजय प्रदायिनी, अद्वितीय वादशक्ति द्वारा सर्वत्र सर्वसे विजय प्रापक-वादि प्रभावक श्री मल्लवादीदेव सूरी, वृद्धवादि सूरि आदिके समानः सुनिश्चितअद्भूत निमित्तज्ञान द्वारा प्रसंगानुसार उस ज्ञान प्रकाशसे शासन प्रभावना कर्ता-निमित्त प्रभावक श्री भद्रबाहु स्वामी तुल्य प्रशंसापात्र आशंसारहित, अप्रमत्त- तपशील तपप्रभावक श्री काष्ठमुनि, पन्ना अनगारादि जैसे विविध और वैचित्र्यता सम्पन्न विद्याधारी- विद्या प्रभावक श्री हेमचंद्राचार्य आदिके समकक्षः अनेक सामान्य तथा असामान्य लब्धि-शक्ति सम्पन, अनेक सिद्धिधारी-सिद्धि प्रभावक श्री पादलिप्तसूरिजी की तरह: उत्तमोत्तम साहित्य सर्जन प्रतिभा द्वारा काव्यादि अनेकविध वाङ्मय रचयिता कवि प्रभावक श्री सिद्धसेन दिवाकरजी, श्री हरिभद्र सुरीश्वरजीके मानिंद अनेक प्रभावक जैनाचार्यों द्वारा जिनशासनके नभांचलने दीप्र-ज्योति सा देदीप्यमान तेज़ प्राप्त किया है जिनमें प्रमुखरूपसे प्रायः साहित्यिक प्रभावकोंकी अग्रीमता एवं बहुलता रही हैं । " युग प्रभावक श्री आत्मानंदजीम.सा. के जीवन कवनसे भी इन सर्वतोमुखी अष्ट प्रभावक गुण सम्पन्नता झलकती है। उनके प्रभावशाली आकर्षण प्रवचनों द्वारा तो अनेकानेक जैन-जैनेतर श्रोताओंके जीवन उन्नतिको प्राप्त हुए हैं। सरल एवं यथायोग्य धार्मिक सिद्धान्तानुरूप अनेक कथाओंको, रसमय शैलीमें अपनी मधुर वाणीसे प्रेषित करके आबाल-वृद्ध, साक्षर निरक्षर सर्वके योग्य उपदेशधारा बहानेवाले धर्मकथा प्रभावक श्री आत्मानंदजीम. सा. को अद्यावधि लोग याद करते हैं । षट्दर्शनके सर्व जैन-जैनेतर वादियोंको अकाट्य एवं बबेजोड़ तर्कशक्ति द्वारा, प्रमाण-नायकी स्याद्वादअनेकान्तवाद शैली सहयोगसे निरुतर करके जैनधर्मकी विजय वैजयन्ती लहरानेवाले उन वादी प्रभावकके सकल वाङ्मयमें भी उसी प्रतिभाके दर्शन होते हैं। विशद विद्याधारी उन तपोवली महात्माके प्रकर्ष पुण्य और मंत्रादि सिद्धियोंके सामर्थ्य से अंबाला शहरके श्री जिनमंदिरकी प्रतिष्ठा या बिकानेरके नवयुवककी दीक्षादि अनेक असंभवितताओंकों संभाव्य सत्यमें पलटनेवाले शासन प्रभावनाके अनेक कार्य सम्पन हुए जिनके द्वारा उन्होंने लोकप्रियताके शिखर पर स्थापित कलश सदृश सम्मान अर्जित किया था । Jain Education International 197 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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