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________________ ॐ ह्रीं ॐ नमः पर्व पंचम् उपसंहार "कीर्ति सितांशु सुभगा भुवि पोस्फुरित; यस्यानघं चरीकरिति मनो जनानम् । आनन्दापूर्वविजयान्तग सूरिभर्तु स्तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये ॥" '. अवनि-से अनादिकालीन, अम्बर-से अनंत, और अम्बुधि-से अगाध, इस असार संसारमें प्रतिसमय जन्म-मरणका अरहट्ट अविरत चल रहा है | कालचक्रकी चक्कीसे बचना नामुमकीन है, अतः नवागंतुककी बिदाई (जन्म पश्चात् मृत्युभी आगमन तुल्य ही निश्चित ही है। लेकिन बिदा होते होते अपनी जो लकीर महापुरुषों द्वारा अंकित होती है, उन चरण चिह्नोंको संसार आदर-सम्मानयुक्त निगाहोंसे निहारता रहता है । आदित्यका उदय हों या दीपककी रोशनी: बादलोंकी बरखा हों या गिरिकंदराके निर्झरोंका कलनादः वृक्षोंका छाया प्रदान हों या फल प्रदान-निरन्तर परोपकारार्थलीन निःसर्गके ये साथी मानव जगत समक्ष निजानंदकी मस्तीकी फुहारोंको संप्रेषित करते रहते हैं । ठीक उसी प्रकार पूर्वांकित सीमाचिह्नोंकी प्रतिमूर्ति सदृश, वे "अलंकार भुवः -युगोत्तम महापुरुष भी परहित निरता भवन्तु भूतगणाः।-- की उदात्त भावनाको संजोये हुए कालजयी या मृत्युंजयीकी खुमारीके साथ जीते तो है जिंदादिली से, मृत्युको भी महोत्सव बनाकर मरने पर भी अमरत्व प्राप्त कर जाते हैं और अमर जीवनकी सार्थक कहानीसे संसारको सदैव प्रेरणा करते रहते हैं । ऐसे मानव-महामानव-परममानवोंकी प्रसूता बहुरत्ना वसुंधरा समय समय पर ऐसे नरपुंगवोंकी भेंट द्वारा संसारको समृद्ध एवं समलंकृत करती रहती है । विश्व विश्रुत विरल विभूती :- विश्ववंद्य, सूरिपुरंदर, लब्ध प्रतिष्ठ कर्मयोगी, तपागच्छ गगनमणि श्री आत्मानंदजीम.सा.का जिनशासनमें आगमन अर्थात् अमासकी कज्जलमयी कालरात्रिके अनंतर सर्वतोमुखी प्रतिभाके आदित्यकी उज्जवल रश्मियोंसे जिनशासनोन्नतिके यशस्वी प्रभातका प्रारम्भ और उनका जिनशासनसे गमन या उनके तेजस्वी जीवन-कवनकी जिनशासनसे कटौती अर्थात आधुनिक इतिहासमें महत्तम न्यूनताका अहसास; उनका साहित्य सृजन अर्थात् कुमतवादी और उनकी कुमान्यताओंके विरुद्ध अकाट्य, युक्तियुक्त तर्क प्रमाणोंका लहराता समुद्र-साथही साथ बहुश्रुतताकी सर्वांगिण लोकमंगलके लिए धार्मिक एवं सामाजिक गंगा यमुनाकी धारायें तथा उनकी न्यौच्छावरी अर्थात् जैनधर्मका ध्रुवाधार स्तंभ एवं जिनमंदिर-जिनप्रतिमा और उनके पूजनकी जीवंत प्ररूपणाका ज्वलंत इतिहास; उनका जीवन अर्थात् सत्यकी गवेषणा-संशोधन-प्ररूपणा, सत्यका प्रकाश और विकासः सत्यके विचार-आचार-प्रचारके संवाहक पूजारीका जीवन, सत्यके संगी-साथी-राही, सत्यके विजेता-प्रणेताका जीवन । इस प्रकार सत्यनिष्ठ श्री आत्मानंदजीम. सा.की अंतरंग आत्मा सत्यसे लबालब भरी थी, तो बहिरंग आत्माकी चारों ओर सत्यके सूर प्रवाहित थे; सत्यकी ही स्वरलहरी एवं लय और ताल पर केवल सत्यका ही नर्तन था । __सहज जन्मजात गुणोंके समीकरण रूप सरलता, सहजता, उदारता, स्वाभिमान, साहसिकता, नीडरता, निश्छलता, वीरता, कार्यक्षम श्रमशीलताने उनके उच्च चारित्रिक गठनको; धैर्य, गांभीर्य, चातुर्य, तीक्ष्णमेधा, तीव्रस्मरण शक्ति, विशद एवं गहन अध्ययन, निःस्पृहता, निरभिमान, विनय, वात्सल्य, तपशीलता, अलौकिक प्रभावयुक्त-भीष्म ब्रह्मचारी तुल्य नैष्ठिक ब्रह्मचार्यादि गुणोंने उनके श्रामण्यको, दृढ़ संकल्पबल, दीर्घदर्शिता, अनुशासन प्रियता, समर्थ क्रान्तिकारी पौरुषत्व, ओजस्वी वक्तृत्व, बेजोड़ तार्किकता, सर्व दर्शनोंकी विशद एवं गहन शास्त्राज्ञता, समयज्ञता, प्रगल्भ असाधारण ज्ञान प्रतिभा आदि गुणोंने उनकी प्रखर समाज सुधारकता (195) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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