SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ---बृहत् नवतत्त्व संग्रह--- ज्ञानार्जनके एकमात्र लक्ष्यको लक्षितकर्ता पू. आत्मानंदजी म.सा.की संयमपालनाके सत्रह साल पर्यंत ज्ञानाराधना पश्चात् चिन्तन-मनन रूप रवैयासे बिलोडनानन्तर प्रथम कृतिजैनधर्मके प्रमुख नवतत्त्वोंकी सैद्धान्तिक संकलना "नवतत्त्व संग्रह "-जैसे नवनीत रूपमें प्राप्त होती हैं। “शुद्ध ज्ञान प्रकाशाय, लोकालोकैक भानवे; नमः श्री वर्धमानाय, वर्तमान जिनेशिने।” २ ग्रन्थ विषयक प्ररूपणा---लोकालोकके एकमात्र सूर्यसमान, शुद्ध ज्ञानके प्रकाशकर्ता, वर्तमान जिनेश्वर श्री वर्धमान स्वामीको नमस्कार करते हुए, मंगलाचरणसे ग्रन्थका शुभारंभ होता है। जैसे ग्रन्थ शीर्षक-'नवतत्त्व संग्रह'-से ही फलित होता है कि इस ग्रन्थमें कर्ताने जीव, अजीव पुण्य, पाप, आश्रव,-संवर, निर्जरा,बंध और मोक्ष-इन नवतत्त्वों का आगमाधारित एवं पूर्वाचार्यों के संकलनोंसे निर्णीत तात्त्विक तथ्यों की विस्तृत प्ररूपणा करने का प्रयत्न किया है। आपहीने ग्रन्थकी समाप्तिके अंतिम मंगलाचरण करते हुए उल्लिखित किया है कि, “आदि अरिहंत वीर पंचम गणेश धीर भद्रबाहु गुर फिर सुद्ध ग्यान दायके, जिनभद्र हरिभद्र हेमचंद्र देव इंद अभय आनंद चंद चंदरिसी गायके, मलयगिरि श्री साम विमला विज्ञान धाम ओर ही अनेक साम रिदे वीच धायके, जीवन आनंद करो सुखके भंडार भरो आतम आनंद लिखी चित्त हुलसायके।".. “जैसे जिनराज गुरु कथन करत धुरु तैसे ग्रन्थ सुद्ध कुरु मोपे मत धीजीयो" ".....................गुरुजन केरे मुख थकी, लहि सो तत्त्व तरंग"।' इससे स्पष्ट है कि आपकी यह रचना-प्ररूपणा-पूर्वाचार्योंके लगाये बेल-बूटोंके सुंदर सुफल हैं, साथ ही ग्रंथरचनाके काल-कारण और स्थानको इंगितकर्ता यह श्लोक भी दृष्टव्य है“ग्राम तो बिनोली नाम लाला चिरंजीव श्याम भगत सुभाव चित्त धरम सुहायो है।........... संवत तो मुनि कर अंक इन्दु संख धर कार्तिक सुमास वर तीज बुध आयो है।" .४ संदर्भ ग्रन्थ-- इस कृति विन्यासमें आपने श्रीभगवती सूत्र, श्रीनंदीसूत्र (श्री मलयगिरि म.. कृत) नंदीसूत्रवृत्ति, श्रीअनुयोगद्वार, श्रीअनुयोगद्वारवृत्ति, श्रीप्रज्ञापना, श्रीउत्तराध्ययन, श्रीआचारांग, श्रीसमवायांग, श्रीस्थानांग, श्रीआवश्यक, श्रीआवश्यक नियुक्ति, श्री आवश्यक भाष्य, श्रीसिद्धप्राभृत टीका, ओघनियुक्ति, पिंडनियुक्ति आदि आगम सूत्रों एवं गोम्मट सार, पंचसंग्रह, सप्ततिसूत्र, शतक कर्मग्रन्थ, पिंड़ विशुद्धि, लोकनालिका बत्तीसी, ध्यानशतक, कर्मग्रन्थ, प्रवचन सारोद्धार आदि ग्रन्थ रत्नों के आलोकमें परीक्षित सत्य सिद्धान्तोंकी प्ररूपणा की गई हैं। जीवतत्त्व--- सैद्धान्तिक एवं तात्त्विक संकलनों के इस बृहत् ग्रन्थमें प्रमुख रूपसे जीवअजीवादि नवतत्त्वों के विस्तृत विवरणमें 'जीव' तत्त्वको प्रधानता दी गई है; अतः प्रथम 'जीवतत्त्व' प्रकरण द्वारा ११७ पृष्ठोंमे ७९ यंत्र एवं तालिकायें देकर (आगमिक एवं (128 Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy