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________________ णका हों तो साधु तपस्वी होता है। (२३) जन्म कुंडलीमें एक भावमें चंद्र, बुध, मंगल, गुरु या चंद्र, सूर्य, बुध, शुक्र, मंगल हों तो विद्वान मुनि-संन्यासी होता है और उनका प्रवचन मननीय होता है। (२४) सूर्य, चंद्र, शुक्र, बुधः या मंगल, बुध, शुक्र, शनिः वा शनि, चंद्र, गुरु, शुक्र किसीभी एक भावमें एक साथमें हों तो व्यक्ति संन्यासी बनता है। (२५) जन्मकुंडलीमें चार--पाँच ग्रह एक ही राशिमें, एक ही भावमें हों और राजयोग के सर्जक हों तब प्रव्रज्या योग प्रबल होता है। अनुयायी-शिष्यवर्ग विशाल होता है। छ-सात ग्रह बलवान. होकर एक ही भावमें हों तब साधु होता है। (२६) मीन राशिमें आत्मकारक ग्रह मोक्षका सूचक है। आत्मकारक ग्रहसे बारहवें स्थान पर शुभ ग्रह-चंद्र, शुक्र, गुरु उच्चके हों तब संन्यासी होता है। (२७) सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र उच्चके या स्वगृही हों तब अनुक्रमसे ५१ वर्ष पश्चात् संसार त्याग, विद्वत्ता, ख्याति-सुख-समृद्धि प्राप्ति, जैन साधुत्व, ज्यादा भूख-भिक्षावृत्ति, धर्म स्थानमें तीर्थाटन, वैदक प्रचारी साधु बननेका योग प्राप्त होता है। उपरोक्त लोखाके विवरण एवं पूज्य गुरुदेवकी जन्मकं डलीके विश्लोषणका सम्मिलित अध्ययन करनेसे ज्ञात होता है कि, एक आध्यात्मिक शक्तिके स्रोत, विद्वान, बहुमुखी प्रतिभाके स्वामी, जगत्पूज्य साधुके योग्य ग्रहादि की स्थिति-संबंध, पूज्य गुरुदेवकी जन्मकुंडलीमें भी प्राप्त होता है। अतः गुरुदेवका उज्जवल-यशस्वी-ख्यातनाम जीवन, जैसे किसी फिल्ममें पूर्वांकित एक एक दृश्य अनुक्रमसे पर्दे पर चित्रित होते हैं वैसे पूर्वकृत पुण्याधारित जीवन प्रसंग मानो जन्मसे ही निश्चित ही था । अन्तमें महापुरुषों की कुछ जन्म कुंडलियाँ उद्धरण स्वरूप प्रस्तुत करके समापन करेंगें । महापुरुषोंकी जन्मकुंडलियाँ लग्न सूर्य चंद्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहु १) गुरु गोविंदसिंहजी १ ९ १२ १० १० १२ ११ १० ३ २) डोंगरे महाराजश्री २ १२ १ ९ ११ १० १० ८ ४ ३) जैनाचार्य विजय सूरिजी ४) आचार्य रजनीशजी ४ ९ ९ १२ ५) स्वामी रामदासजी ३ १२ ३ ८ १२ १२ ११ ९ ११ ६) अरविंद घोष ७) आद्य शंकराचार्यजी ४ १ ३ १० २ ४ ४ ७ ७ ८) स्वामी करपात्रीजी ४ ४ ५ ९ ४ ४ ४ १२ ३ ९) जैन साध्वी (कलाश्रीजी) १०) महात्मा गौतम बुद्ध ११) रामानुजाचार्य १२) गुरु नानकजी - १३) जय गुरुदेव नाम SSCCCCCCHAN 9 15-0s »»»s-ms - - 9 (123) Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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