SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जन्मकुंडलीमें नवम स्थान धर्माराधना-साधनाके लिए, पंचम स्थान पूर्व जन्मकी साधना एवं बारहवाँ आध्यात्मिक आराधनाके लिए दृष्टव्य है। पाँच-नव-बारहवें स्थान पर कौनसा ग्रह है और पंचमेश-भाग्येश-व्येश कौनसे ग्रह है-इसके बलाबल पर आध्यात्मिक आराधनाका कथन किया जाता है। चंद्र-मन, सूर्य-आत्मा, गुरु-धर्मनिर्देशक, शनि-वैराग्यसूचक और लग्न-देह, दर्शाते हैं। बलवान लग्नेश-बलवान व्ययेशका परिवर्तन योग भी त्याग भाव अर्पित करता है। शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक, आध्यात्मिक-बंधन, जेलयोग, कर्जदारी, समाजसे तिरस्कृति, और मोक्षादि विचार बारहवें स्थान पर से किया जाता है। सुख भुवन दूषित हों, तब दुःखसे त्रस्त व्यक्ति वैराग्य की ओर झूकता है। व्यय स्थानके निर्देशक अच्छे , बलवान और शुभ हों तब उत्कृष्ट वैराग्य उद्भावित होनेसे संन्यास लेता है या चाहे संसार त्याग न भी करें लेकिन मानसिक वैराग्यभावना प्रबल होती है। प्रव्रज्या योगवाली व्यक्तिमें गूढ शास्त्रों की ओर झुकाव, तत्त्वज्ञान, आत्मज्ञान, व्यवहार्य, नीतिवादी, सिद्धांतवादीता, समाजोपयोगी होनेकी तत्परता, संशोधनात्मक वृत्ति, सच्चे राहबर, शास्त्रज्ञ-आदि महत्वपूर्ण लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं। कर्क, कन्या या मीनका गुरु एक, छ आठ, दस, ग्यारह या बारहवें स्थानमें हों तब ब्रह्मज्ञान प्राप्तिका सूचक है। सूर्यसे आगे बुध द्वितीय भुवनमें हों तो व्यक्तिमें आध्यात्मिक शक्ति होती है। गुरु-चंद्र या गुरु-मंगल वाली व्यक्तिको तीर्थयात्राका अच्छायोग प्राप्त होता है। मिथुन, कन्या या मीनका राहु-तृतीय, पंचम या दसम स्थानमें हों तब व्यक्तिकी अटूट श्रद्धा ईश्वरके प्रति होती है। वह भक्तिमार्ग द्वारा ब्रह्म-ज्ञान प्राप्त करता है। दसम स्थानमें चंद्र-शनिकी युति, मोह-मायाका नाश करके वैराग्य प्राप्त कराती है। चंद्र-शनि, सप्तम-चतुर्थ-लग्न स्थानमें होनेसे उस स्थानाधारित फल कम हो जाता है। मोहजालका पाश दूर होनेसे स्नेहल-दयावान, एकाग्रचित्त, कृतनिश्चयी, समाधान वृत्तिवाला होता है। मातृकारक चंद्रके साथमें शनिकी युति-प्रतियुति मातृसुख कम करती है। बचपनमें ही माताकी मृत्यु या मातृप्रेम में उणिमता आती है। माताकी उपस्थितिमें भाग्योदय नहीं होता है। सूर्य-शनि केन्द्र में या त्रिकोणमें या द्वितीय स्थानमें हों तब लम्बी आयु, शरीरसुख, निर्भयता, तेजस्विता, ब्रह्मचारी एवं ज्ञानयोगसे साक्षात्कार पाने के लिए समर्थ होता है। पिताकी मृत्यु पश्चात् भाग्योदय होता है या पितृसुखमें हानिका सूचक है।.....गुरु-शुक्रकी युति अलौकिक बुद्धि प्रतिभा, अध्यात्म-ज्ञान, वाद-विवादमें कुशलता, दया-प्रेम-समाज कल्याणके भावयुक्त, महत्वाकांक्षी, प्रवृत्तिशील, गुण ग्राह्य वृत्ति, प्रभावशाली व्यक्तित्व प्रदान करती है। अनेक साधु-संतोंकी कुंडलीमें गुरु-शक्रकी यति देखने को मिलती है। संक्षेपसे यह कह सकते हैं कि--जन्मकुंडलीमें लग्नस्थानसे-स्वभाव, मनोबल, कीर्ति; धन स्थानसे (121) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy