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________________ मंगल-गुरु और राहु-चंद्रकी युति, शनि-चंद्रकी प्रतियुति, उच्चके ग्रहोंकी दृष्टि आदि अनेक कारणोंसे कुंडलीके ग्रह जातक के जीवनको सर्वोत्कृष्टता बक्षते हैं। भाग्य भुवनका स्वामी योगकारक शुक्र उच्चका बनकर सूर्य-बुधसे युति संबंधसे युक्त धनभुवनमें बिराजित है। अतएव भाग्यदेवी विजयमालारोपणके लिए मानो सदैव तत्पर रहती थी। ग्रहोंके गोचर परिभ्रमणसे असरग्रस्त आपके जीवनके :-महत्वपूर्ण प्रसंगोंका विश्लेषण :अद्यावधि पूज्य गुरुदेवके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व एवं जीवन प्रसंगोंका आपकी जन्म कुंडलीके स्थान-राशि-ग्रह के परस्पर संबंधाधीन फलादेशके स्वरूपमें अध्ययन किया गया। अधुना ऐसे उत्कृष्ट व्यक्तित्वधारी विरल विभूतिके अत्यन्त महत्त्वपूर्ण-यादगार जीवन प्रसंगोंको तत्कालीन उन ग्रहों के गोचर परिभ्रमणके आधार पर यथास्थित समय-संयोग द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है। यह विशलेषण केवल आपकी ही जन्मकुंडलीको लक्ष्य करके किया जा रहा है। (१) षष्टम अशुभ स्थान स्थित तृतीय एवं दसम स्थानका स्वामी मंगल और द्वितीय एवं एकादश स्थानका स्वामी गुरु परसे, जब राहुका परिभ्रमण होता है तब उन स्थानोंका अशुभ फल प्राप्त होता है-तदनुसार आपकी बारह-तेरह, इकतीस-बत्तीस,उनचास-पचास वर्षकी आयुमें अशुभकारी घटनायें घटित होनेकी संभावना होती है - यथा - पारिवारिक जनों का वियोग या हानि, यश-मान-प्रतिष्ठामें विक्षेप या हानि, साहस-पराक्रम आदिमें निष्फलता प्राप्त होती है। जैसे A. तेरह सालकी आयुमें आपको माता-पिता-परिवार-मित्रवर्गसे वियोग प्राप्त हुआ, और जीरामें जोधेशाहजीके घर जाकर जीवन बसर करनेका प्रसंग प्राप्त हुआ। B. जब आपकी बत्तीस सालकी उम्रथी, आपका अंतर्मन मूर्तिपूजाके प्रति आस्थासे रंग चूका था। अतएव आप स्थानकवासी साधुवेशमें मूर्तिपूजादि सद्धर्मका उपदेश सुनाते थे। यही कारण बन पड़ा कि पूज्य अमरसिंहजीने आपके विरुद्ध एक मेजरनामा तैयार करके सभीके हस्ताक्षर लेकर आपको समुदायसे बाहर करनेका कारनामा रचा (वैसे तो आपके प्रबल पुण्य योगसे ही आपको इस कारनामेका कोई असर नहीं हुआ, लेकिन, मनमें उद्वेग अवश्य रहा) C. उनचास वर्षकी आपकी उम्रथी तब बड़ौदामें होनेवाली लहरुभाई-नामक युवककी दीक्षा, उनकी माताके विरोधके कारण तत्काल स्थगित कर देनी पड़ी। D. पचास वर्षकी आयु थी तब आपने पालीताणामें चातुर्मास किया। उन दिनों में वहाँ यतियोंका-विशेष रूपसे 'वीरका' रिखका-जोरदार वर्चस्व था। उन्होंने आपके चातुर्मास प्रवेश-महोत्सव जुलूसमें एवं चातुर्मासमें-पर्युषण में कल्पसूत्र के जुलूस में विघ्न डालने का भरसक प्रयत्न किया-हाँलाकि वह निष्फल हुआ। २. षष्ठम अशुभ स्थान स्थित तृतीय एवं दसम स्थानका स्वामी मंगल और द्वितीय एवं एकादश स्थानका (115 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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