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________________ नक्षत्र कृत्तिका उ.फाल्गुनी उत्तराषाढ़ा रोहिणी हस्त श्रवण मृगशिर चित्रा घनिष्ठा आश्लेषा पुनर्वसु भरणी आर्द्रा अश्वनी ज्येष्ठा विशाखा पू.फाल्गुनी अनुराधा स्वाति मघा, मूल रेवती पू.भाद्रपदा पूर्वाषाढ़ा उ.भाद्रपदा शततारका ॐ चंद्रकी क्षीण कलामें वह अशुभ बनता है और वृद्धि कलामें चंद्र शुभ बनता है। • अकेला या शुभ ग्रह के साथ शुभ और अशुभ या शुभाशुभ दोनों के साथ रहने पर अशुभ होता है। 'सिद्धान्त-सारानुसार' ग्रह नव होते हैं; यथा-सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु।' नये शोधानुसार (पाश्चिमात्य मतानुसार) युरेनस, नेप्च्युन और प्लुटो-तीन ग्रहभी अपना प्रभाव छोड़ते हैं। अतएव बारह ग्रह होते हैं। जो ग्रह रात्रिमें नहीं दिखता-अर्थात् दिनमें उदित होता है वह अस्तका ग्रह और जो ग्रह रात्रिमें आकाशमें उदित होता है, वह उदयका ग्रह कहा जाता है।' जातकके जन्म समयमें जन्मकुंडलीमें जो ग्रह बलवान होता है, जातक उसके स्वरूपवाला (जो 'लघुजातक में वर्णित है तदनुसार स्वरूपवाला) होता है। अगर एकसे ज्यादा ग्रह बलवान हों तब सभी बलवान ग्रहके मिश्र स्वरूपवाला होता है। बलाबल -- सूर्य--गुरु-शुक्र दिनमें, चंद्र-मंगल-शनि रात्रिमें और बुध दिन और रात्रिमें बलवान होता है। प्रत्येक ग्रह अपने दिन, मास, वर्ष, काल, और होरामें बलवान होता है। पापग्रह कृष्णपक्षमें और शुभग्रह शुक्लपक्षमें बलवान होता है। शुक्र, मंगल, सूर्य और गुरु उत्तरायनमें, चंद्र-शनि दक्षिणायनमें और बुध दोनों अयनोंमें एवं यदि नवमांशमें स्वग्रही हों तब बलवान होता है। कोईभी ग्रह जब शुभ ग्रहकी दृष्टियुक्त अथवा शुभग्रहकी युतिवाला न हों, लेकिन, नीचका-शत्रुके गृहका, पाप ग्रहसे युति अथवा दृष्टियुक्त, पापग्रहके वर्गमें, संधिमें, अल्पांशमें या अस्तका हों तब शुभ फल देने में असमर्थ होता है। स्वर्गलोकका स्वामी गुरु; नरक का शनि; मनुष्य लोकका चंद्र और शुक्र; तिर्यक् लोकका बुध और पितृओंका स्वामी सूर्य एवं मंगल होता है। इसके अतिरिक्त फलादेशके समय ग्रहोंकी दृष्टि और उनके पारस्परिक संबंधको भी दृष्ट्यान्तर्गत किया जाता है। इतना ही नहीं इनको अधिक महत्वपूर्णभी माना जाता है क्योंकि कई बार इनके ही कारण फलादेशमें पूर्व-पश्चिमका अंतर नज़र आता है। ग्रहकी दृष्टि-शुभ स्थानमें अशुभ ग्रहकी अशुभ दृष्टि होनेसे उस शुभ स्थानसे मिलनेवाले शुभ फलमें हानि प्राप्त होती है; अथवा अशुभ स्थानमें शुभ ग्रहकी शुभ दृष्टि अशुभ फलमें हानि कर्ता है अर्थात् जातकको शुभ ग्रहकी शुभ दृष्टिसे अशुभ स्थानका फल हानिमें नहीं प्रत्युत लाभरूप प्राप्त होता है। जो ग्रह जिस स्थानको पूर्ण दृष्टिसे देखें तब उन स्थानोंमें उनका अपना विशिष्ट प्रभाव (96) Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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