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________________ उन्होंने जो कुछ लिखा है उसकी अपेक्षा उनका अध्ययन अत्यंत व्यापक था। क्योंकि प्रतिपाद्य विषयका संक्षिप्त वर्णन करके वे पाठकोंको स्वयं बता देते हैं कि विस्तृत जानकारी कहाँसे प्राप्त होगी। उदा.-“यथार्थ आत्म स्वरूपका कथन आचारांग, तत्त्वगीता, अध्यात्मसार, अध्यात्म कल्पद्रुम आदि प्रमुख जैन शास्त्रोंमें; और योगाभ्यासका स्वरूप योगशास्त्र, योग विंशिका, योगदृष्टि समुच्चय, योगबिंदु, धर्मबिंदु-प्रमुख शास्त्रोंसे; तथा पदार्थोंका खंडन मंडन सन्मति तर्क, अनेकान्त जयपताका, धर्म संग्रहणी, रत्नाकरावतारिका, स्याद्वाद रत्नाकर, विशेषावश्यक भाष्यादि प्रमुख ग्रंथोमें; साधुकी पदविभाग समाचारी छेदग्रंथोमें; प्रायश्चितकी विधि जीतकल्प प्रमुखमें; और गृहस्थ धर्मकी विधि श्रावक प्रज्ञप्ति, श्राद्ध दिनकर, आचार दिनकर, आचार प्रदीप, विधि कौमुदी, धर्मरत्न आदि प्रमुख ग्रंथोंमें है। ऐसा कोई पारलौकिक ज्ञान नहीं जो जैन मतके शास्त्रोमें न हों।"१२४ इस प्रकार हम देख सकते हैं कि सत्य दृष्टिकोणसे तत्त्व परीक्षक और समीक्षककी अदासे किया अध्ययन, आपकी जैन वाङ्मय परकी अखंड़ श्रद्धा-जैनधर्ममें दृढीभूत स्थिरताका परिचायक है। विश्वविभूति---- "इनकी भव्य समाधि गुजरांवालामें स्थित है। भारत आज उस अमूल्य निधिसे वंचित है। परंतु यह सत्य है कि महापुरुष काल और क्षेत्रकी सीमामें बंधे नहीं रहते हैं। वे विश्वविभूति होते हैं जो सद्भाव और सत्कर्मके रूपमें सर्वत्र निवास करते हैं।१२५ चाचा लक्खूमल और देवीदित्तामल द्वारा प्रदत्त नाम 'दित्ता' को सार्थक करनेके लिए अनुपम धार्मिक साहित्यके भेंट दाता, नवयुग निर्माताके रूपमें मानो प्रकृतिकी ओरसे सहसा दिया गयायथानाम तथा गुणधारी-हिमाद्रि-से विराट व्यक्तित्वधारी 'आत्मारामजी महाराज' आत्म स्वरूप ज्ञाता और आत्म तत्त्वमें रमणता करनेवाले विश्वकी धार्मिक आत्माओंके विश्रामधाम और श्री विजयानंदाभिधान अनुरूप आत्मिक आनंद पर विजयवान-ये असाधारण आद्याचार्य परमात्मा श्री महावीर स्वामीजीकी पट्ट परंपरा रूपी बहुमूल्य हारके हीरे थे, जिनकी यशोगाथा अंकित है निम्न शब्दपूंजमें-"देहधारी मानव, साधु, गुरु, सुधारक, खंडन-मंडनके कर्णधारादि रूपोमें श्री आत्मारामजीकी झाँकि - उनका अपूर्ण दर्शन है - और वह भी प्रत्यक्ष नहीं, परोक्ष ही करनेका हमारा तकदीर है ....... उस दर्शनमें प्रतिभा, प्रताप और शक्ति-तेजस्विता, तर्क और युक्ति झलकती है; उस झाँकिमें शासन सेवा, कार्य तत्परता, अभ्यासकी गहनता, तलस्पशी विचारश्रेणी और कथनीकरणीकी एकरूपता प्रकाशित होती हैं; अतः उनका व्यक्तित्व असामान्य सुधारकता, नीडर वक्तृत्व, दृढ़ निश्चय बल, सादगी युक्त संयम, श्री महावीर देवके प्रति सच्ची श्रद्धा से एवं उदारता, व्यवहार कुशलता और व्यवहार शुद्धिकी अक्षय अभिलाषासे पल्लवित होता हुआ दृष्टि पथमें आता है।.............वर्तमान अराजकताके बीज उसी समय बोये जा चुके थे। आत्मारामजी के समर्थ व्यक्तित्वने उसे सिर्फ थोडी देरके लिए रोक रक्खा था । और इस तरह वे किसी भावि आत्मारामक राहबर बन गये ।"१२६ बूझते दीपककी प्रज्वलित ज्योत-(जीवनके अंतिम पल)---आजीवन सच्ची साधनाके परम साधक श्रीमद्विजयानंद सुरीश्वरजी महाराज इस लोकमें विजयी होकर मानो परलोक-विजयी बननेको उद्यत हुए। आपके अंतिम दर्शक भक्त के उद्गार थे-“आप कहा करते थे कि, 'तुम लोग चिंता क्यों करते हो ? आखिरमें तो हमने बाबाजीके प्रिय क्षेत्र गुजरांवालामें ही बैठना है।'.........आपने अपना कथन सत्य कर दिखाया मगर हम लोगोंका...........।"१२७ (85) Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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