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________________ निर्धारित समय पर ही निश्चित कार्य करनेकी दृढ़ता भी गौर करने योग्य थी । समयकै पाबंद गुरुदेव किसीकी भी परवाह नहीं करते थे। अहमदाबादसे विहार करते समय नगरशेठ समय चूके। आपने उनकी परवाह किये बिना ही, औरोंके रोकने पर भी न रुककर विहार कर ही दिया। कलकत्ताके बाबूजीकी रुक जानेकी विनती भी अमान्य करते हुए बिना संकोच कह दिया कि, “ कार्यक्रम निश्चित हो चूका है इसलिए अब नहीं रुक सकते।” लाभ लेनेके लिए बाबूजीकोभी चलना पड़ा। सुरतके श्रावक सांवत्सरिक प्रतिक्रमणका समय हो जाने पर भी तैयार नहीं थे, तब चेतावनीके स्वरमें प्रतिक्रमण प्रारम्भ करनेकी घोषणा कर दी, जिससे सभी धड़ाधड़ तैयार होकर बैठ गए। आपकी दैनिक जीवनचर्या इसका ज्वलंत उदाहरण हैकि एक अहोरात्रिमें आप केवल चारसे पाँच घंटोके लिए विश्राम करते थे। इसके अतिरिक्त एक मिनिटका समय कभी कहीं पर किसीके साथ बेकारमें व्यर्थ नहीं करते थे तभी तो अपनी इतनी छोटी जिंदगीमें जीवनके प्रत्येक क्षेत्रमें चंचूपात किया और सफल जिंदगी जिंदादिलीसे जी गये। इतना विशाल और गहन अध्ययन एवं अध्यापन, लेखन एवं पठन, व्याख्यान एवं वाद, साधु सुधार एवं समाज सुधार आदि अनेकानेक स्वपर कल्याणकारी विशिष्ट कार्य सम्पन्न कर सकें। समयज्ञ संत-- केवलज्ञानके दर्पणमें सनातन सत्य और मूलभूत सिद्धांतोंको देखकर सरल और संक्षिप्त रूपमें प्ररूपित करना यह सर्वज्ञोंका उपकार है। लेकिन उसे चिरकाल तक स्थायी स्वरूपमें समाजमें प्रसारित और प्रचारित करना यह समयज्ञोंके स्वाधीन हैं। समयको पहचानकर समाजका पथप्रदर्शक समयज्ञ कहा जाता है जैसे पूज्य गुरुदेव समयका मूल्य अमूल्य आंकते थे, वैसे ही समय अर्थात् कालमान प्रवाहित समयके भी पारखी थे। आपके जीवनमेंभी समय समय पर ऐसे समयज्ञताके चमकार दृष्टिगोचर होते हैं। सर्व प्रथम स्थानकवासी रूढि परंपरानुसार व्याकरण न पढ़नेकी गुर्वाज्ञाको भी समयज्ञ संतने लांघकर व्याकरणके साथ काव्यालंकार और न्यायादिका भी अभ्यास किया। फलतः शास्त्र सिद्ध सत्यका परिचय हुआ। तत्काल आपने प्रबल झंझावाती विरोधोंके बीच सत्यका ध्वज लहराया और स्थानकवासी, आर्यसमाजी थियोसोफिस्टों के मूर्तिपूजा विरोधी बखेड़ों को उन्हीं क्षेत्रोंमें मूर्तिपूजाका बिगूल बज़ाकर, मूर्तिपूजाके शास्त्रीयाधारों पर मंडाण कर भावपूर्वक प्रेमसभर मूर्तिपूजा तत्परश्रद्धावान समाजका सृजन करके बिखेर दिया। , इससे आगे बढ़कर यथासमय, समर्थ विद्वत्ता और ढूंढ़क समाजके श्रद्धाभाजन होनेके प्रत्युत, समयज्ञ संत आत्मारामजीने सुयोग्य गुरु श्री बुद्धिविजयजी म.सा. की निश्रा एवं शिष्यत्व स्वीकार करके संविज्ञ विधि पक्ष अनुशासनको अंगीकृत किया। यह उनकी समयज्ञताका ही चमकार था कि, एक सफल सुकानी सदृश अगाध ज्ञान और युक्ति प्रमाण न्यायकी अकाट्य तर्कबद्ध विश्लेषण शैलीरूपी पतवारोंसे झूठी प्ररूपणा और क्षुद्र मतभेदोंके भंवरोंमें फसनेवाले जैन संघ रूपी जहाज़को बचा लिया। भारत वर्षके समस्त श्री संघो की सूरिपद स्वीकारनेकी विनतीको, अपनी हार्दिक अनिच्छा होते हुए भी यतियोंके वर्चस्वको दूर करने हेतु ही मान्य रखकर समयज्ञ साधु श्री आनंदविजयजी, Jain Education International 79 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002551
Book TitleSatya Dipak ki Jwalant Jyot
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiranyashashreeji
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1999
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size22 MB
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