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________________ लेखकीय निवेदन त्रिशलानंदन काश्यपगोत्रीय श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी के जन्म को आज 2600 से अधिक वर्ष हो चुके है । श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी ने केवलज्ञान पाकर जो बताया वह संपूर्ण सत्य है अतः वह वैज्ञानिक है । वस्तुतः, जैनदर्शन पूर्णतया वैज्ञानिक है ऐसा आजके महान विज्ञानी भी स्वीकार करते हैं । भारत के आंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सुप्रसिद्ध विज्ञानी डॉ. जयंत विष्णु नारलीकर (Director & Homi Bhabha Professor, Inter University Centre for Astronomy and Astrophysics, Pune-411 007) ने मेरी किताब 'Scientific Secrets of Jainism' की समीक्षा में बताया है कि "प्रस्तुत किताब में लेखक ने दलील की है कि जैन विचारधारा, विज्ञान ने जो दावा किया है उससे भी बढकर ज्यादा परिपक्व, ज्यादा व्यापक व ज्यादा संतोषकारक है । इसी किताब का संकलन / संक्षेप सामान्य वाचकों को ध्यान में रखकर, 'भारतीय प्राचीन साहित्य वैज्ञानिक रहस्य अनुसंधान संस्था (RISSIOS), अमदावाद द्वारा प्रकाशित "जैन दर्शननां वैज्ञानिक रहस्यो' नामक गुजराती |किताब के आधार पर किया गया है । ___ मेरे इस प्रकार के अनुसंधान, संपादन व प्रकाशन के अपूर्व कार्य में सहयोग तथा बल देनेवाले मेरे शिष्य मुनिश्री जिनकीर्तिविजयजी तथा श्री पार्श्व पद्मावती श्वे. मू. पू. जैन संघ के कार्यकर्ता भाई श्री सुप्रिमभाई शाह, श्री प्रकाशभाई बी. शाह, श्री अक्षय गांधी, श्री सुनीलभाई लोढा, डॉ. अनिल कुमार जैन तथा श्री संजय शाह को स्मृतिपथ में लाना अनुचित नहीं माना जायेगा । मेरे इस कार्य में परम पूज्य उपाध्याय श्री भुवनचंद्रजी महाराज की प्रेरणा व मार्गदर्शन निरंतर प्राप्त हो रहे हैं एतदर्थ मैं उनका ऋणी हूँ। इस किताब का संकलन / संपादन करने में और प्रभु महावीर द्वारा प्ररूपित सनातन सत्य स्वरूप सिद्धांतों का निरूपण व प्रतिपादन करने में |.यदि जिनागम विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो मैं त्रिविध त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडम् देता हूँ। वि. सं. 2060 ज्येष्ठ शुक्ल - 5, रविवार पं. नंदिघोषविजय गणि जैन उपाश्रय, सुथरी - 370 490 (कच्छ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002549
Book TitleJain Dharma Vigyana ki Kasoti par ya Vigyana Jain Dharma ki Kasoti par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandighoshvijay
PublisherBharatiya Prachin Sahitya Vaigyanik Rahasya Shodh Sanstha
Publication Year2005
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Science
File Size6 MB
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