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________________ (96) भमरनरिंदो = भ्रमरराजा, य = और, कमलादेवी = कमला देवी, दुवे वि= दोनों ही, गहियजिणधम्मा - जिन धर्म को ग्रहण करके, अंतसुहज्झवसाया= अंत समय में शुभ ध्यान के कारण, तत्थेव = उसी ( महाशुक्र नामक स्वर्ग में), सुरवरा = श्रेष्ठ देव, जाया = हुए । (97) इतश्च = और इधर, रायगिहं- राजगृह नामक, वरनयरं = श्रेष्ठ नगर में, धणधन्नाइसमिद्धं= धन-धान्य की समृद्धि वाला, सयललोगम्मि = समस्त लोक में, सुपसिद्धं = प्रसिद्ध, नयं = न्याय युक्त, वरं = सुन्दर (और), रंगत = भव्य रूप वाला, मंदिरं = मंदिर (महल) अस्थि = है। (98) तत्थ= वहाँ, अरिकरिविणासे = शत्रुओं के हाथों का विनाश करने वाले, सिंहु व्व = सिंह के समान, महिंदसीहो = महेन्द्रसिंह नाम का, राया = राजा था, जस्स = जिसके नामेण= नामसे, समरंगणम्मि= समरांगण में ( युद्ध मैदान में), सुहडकोडी = करोड़ों योद्धा, भज्जइ - भग्न ( नष्ट) हो जाते थे। (99) विणयविवेग = विनय, विवेक, वियारप्प = विचारशील, ( आदि), मुहगुणा = मुख्य गुणों से, भरणपरिकलिया = अलंकृत तथा परिपूर्ण, देवी इव = देवी के समान, रूवसंपया= रूप से संपन्न, तस्स = उस राजा की, कुम्मादेवी= कूर्मा (नामकी) देवी (रानी), अत्थि = थी । (100) सुरिंदसईणं = इन्द्र और शची ( इन्द्राणी), अहवा= अथवा, वम्महरईणंकामदेव और रति, जह = के समान, विसयसुहं विषयसुखों को, भुंजंताणं = भोगते हुए, ताण = उनका, कालो = समय, सुक्खेण = सुख से, वच्चए व्यतीत हो रहा था / निकल रहा था । (101) अण्णदिणे = किसी दिन, सा= वह, देवी = कूर्मारानी, निअसयणिज्जम्मि= अपनी शय्या पर, सुत्तजागरिया = सोती हुई जाग गई, सुमिणम्मि= स्वप्न में, अच्छरियं = आश्चर्यजनक ( एवं ), मणहरणं = मन को हरने वाले, सुरभवणं= देव-भवन को, पिच्छइ = देखती है। 58 सिरिकुम्मापुत्तचरिअं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002548
Book TitleSirikummaputtachariyam
Original Sutra AuthorAnanthans
AuthorJinendra Jain
PublisherJain Adhyayan evam Siddhant Shodh Samsthan Jabalpur
Publication Year2004
Total Pages110
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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