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________________ उन (सीयलं तित्थयरं) शीतलनाथ तीर्थंकर को (णमामि) [मैं] नमन करता हूँ। जेणप्पणीदो दुवि-मोक्ख मग्गो, महव्वदो-पुण्ण अणुव्वदो य । अणुव्वदे एगदसे य सेण्णी, सेयंकरी सेय-णाहं णमामि ॥११॥ __ अन्वयार्थ-(जेण) जिन्होंने (दुवि-मोक्ख मग्गो) दो प्रकार का मोक्षमार्ग (पणीदो) प्रतिपादित किया जिसमें] (महव्वदो-पुण्ण) महाव्रत पूर्ण [मोक्ष मार्ग है] (य अणुव्वदो) और अणुव्रत अपूर्ण । (अणुव्वदे एगदसे य सेण्णी) अणुव्रत में ग्यारह श्रेणी [प्रतिमा कहने वाले] (सेयंकरी) कल्याणकारी (सेय-णाह) श्रेयनाथ [श्रेयांसनाथ] भगवान् को [मैं] (णमामि) नमन करता हूँ । इंदादिए खीरसिंधु-जलेहिं, सहाविदो मेरुगिरिम्हि बाले । कालंतरे पंचकल्लाण पत्तं, चम्पापुरीए पणमामि वासुं ॥१२॥ अन्वयार्थ- (बाले) बाल्यावस्था में [जिनका] (मेरुगिरिम्हि) मेरु पर्वत पर (इंदादिए) इन्द्रादि ने (खीर सिंधु-जलेहिं) क्षीर सिंधु के जल से (सहाविदो) अभिषेक किया था [तथा] (कालंतरे) कालान्तर में (चम्पापुरीए) चम्पापुरी में (पंचकल्लाण पत्तं) पंचकल्याण प्राप्त (वासु) वासुपूज्य भगवान् को [मैं] (पणमामि) प्रणाम करता हूँ। णाणस्सहावी य अप्पस्सरूवी, झाणिव्वदी गुण संपुण्णधारी । मिच्छत्तघादी सिवसोक्खभोगी, जिणिंददेवं विमलं णमामि ॥१३॥ ___ अन्वयार्थ- (णाणस्सहावी) ज्ञान स्वभावी (अप्पस्सरूवी) आत्मस्वरूपी (झाणिव्वदी) ध्यानी (वदी) व्रती (गुण संपुण्णधारी) संपूर्ण गुणों के धारी (मिच्छत्तघादी) मिथ्यात्व का घात करने वाले (य) और (सिवसोक्खभोगी) मोक्षसुख के अधिकारी (जिणिंददेव विमलं णमामि) जिनेन्द्रदेव विमलनाथ को नमन करता हूँ। झाणग्गिणा जेण दहिऊण कम्मं, अप्पसरूवत्त पत्तूण धम्मं । अणंत जीवाण कल्लाण कत्तं, णतं णमामि गुण-णत पत्तं ॥१४॥ ८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002546
Book TitleNidi Sangaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar
PublisherJain Sahitya Vikray Kendra Udaipur
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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