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________________ समाहित है | महाकाव्य, खण्डकाव्य, कथाकाव्य, स्तुतिकाव्य आदि काव्यों की लम्बी परम्परा है । प्राकृत में आगम परम्परा से लेकर रस, छन्द, अलंकार के प्रबन्ध में व्यापकता प्रदान करते हुए इक्कीसवीं शताब्दी में भी प्राकृत में कुछ न कुछ लिखा जा रहा है । क्योंकि प्राकृत व्यापक जीवन के विस्तार से जुड़ी हुई है। इसकी वनस्थली व्यापक है, इसकी शोभा, पुष्प, गुच्छों में समाहित है और इसकी विशेषता अतिशोभन है । प्रबन्ध की व्यापकता के साथ-साथ नीति, वचन प्रत्येक युग में अनुभूति प्रदान करते रहें हैं | उनमें बाह्य उपकरणों से मुक्त सहज रस, सहज स्मरणीय चिंतन एवं वस्तुस्थिति के प्रस्तुतीकरण के भाव होते हैं । नीति रस भरे वाक्य मोदकों के समान है। जिनके आस्वाद से सहृदय रस चर्वणा के साथधर्म तत्त्व का समावेश होता है, जिसमें पाठक विवेक को जागृत करता है । वर्तमान जीवन में अनेक कुण्ठाएँ हैं, द्वन्द्वात्मकस्थितियाँ हैं और भौतिकजगत की चारों ओर चकाचौंध भी है ऐसे समय में सरल, शान्त, भावनाशील, धर्म, अहिंसा, ज्ञान, ध्यान, तप आदि से जुड़ी हुई नीतियाँ वैयक्तिक जीवन को नियमित करने में समर्थ होती हैं। प्रबोधाय विवेकाय, हिताय प्रशमाय च । सम्यक् तत्त्वोपदेशाय, सतां सूक्ति: प्रवर्तते ।। आचार्य शुभचन्द्र ने सच ही कहा है नीति वचन युक्त सूक्तियाँ अन्त:करण को जागृत करने के लिए हैं । ये विवेक के लिए, लोककल्याण के लिए, विकार शान्त करने के लिए तथा तत्त्व उपदेश के लिए होती हैं । उपदेश में भी वीतराग के वचन, सर्वज्ञ की वाणी, प्रभावशील होती है । उससे सुप्त चेतना प्रबुद्ध होती हैं। अंतरपटल का मोह आवरण हटता है । मंदाकिनी का निर्मल नीर शुद्ध बनाता है और इनके भावों में प्रविष्ट व्यक्ति भव-भव के संताप को दूर करने में समर्थ होता मुनि सुनीलसागर के ‘णीदी संगहो' नामक प्राकृत प्रस्तुति में निम्न विशेषताएँ हैं १.धर्म का शाश्वत आनन्द २.दर्शन की सुगन्ध ३. जीवन का निनाद ४. कला की अपूर्वशक्ति ५. सदाचार की संजीवनी ६. शिक्षा तत्त्व ७. बोध सूत्र धर्म नीति व्यक्ति को अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, ज्ञान, तप आदि की ओर ले जाती है । धर्म नीति से कार्य और अकार्य की पहिचान भी होती है । यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002546
Book TitleNidi Sangaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar
PublisherJain Sahitya Vikray Kendra Udaipur
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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