SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्पन्न दुःख (भीतरी कष्ट) मनुष्यों को नारकियों के समान दुःखों का अनुभव करा देता है । अर्थात् उपरोक्त दुःख मनुष्य को महाकष्टकारी हैं । एक्कमेव वरं पुत्तो, जो सम्मग्ग परायणो । विचार - कुसलो धीरो, मादुं पिदुं सुहप्पदो ||१७|| अन्वयार्थ - (जो सम्मग्ग परायणो ) जो सन्मार्ग में लगा हुआ (विचार - कुसलो) विचार-कुशल (धीरो) धीर [तथा] (मादुं पिदुं सुहप्पदो) माता-पिता को सुखप्रद हो [ ऐसा ] ( एक्कं पुत्तो एव) एक पुत्र ही ( वरं ) श्रेष्ठ है । भावार्थ- जो अच्छे आचरण वाला, सच्चे धर्म (व्रत - नियमों) का पालन करने वाला, विचार करने में कुशल, धैर्यवान्, शूरवीर, साहसी, माता-पिता को सुख प्रदान करने वाला तथा उनकी आज्ञानुसार चलने वाला हो ऐसा एक पुत्र ही अच्छा है । सोग - सत्तु-भयत्ताणं, पीदी - विस्सास- भायणं । गुणाणं जुंजदे णिचं, सेट्ठ- मित्तस्स लक्खणं ||१८|| अन्वयार्थ - (सोग-सत्तु-भयत्ताणं) शोक, शत्रु तथा भय से रक्षा करना, (पीदी - विस्सास - भायणं) प्रेम, विश्वास का पात्र होना ( गुणाणं जुंजदे णिचं) हमेशा गुणों में जोड़ना [ये] (सेट्ठ मित्तस्स लक्खणं) श्रेष्ठ मित्र के लक्षण हैं । भावार्थ- शोक के आने पर, शत्रुओं से सामना होने पर अथवा अन्य भयों के प्राप्त होने पर साथ रहने वाला, सुरक्षा करने वाला, प्रेम और विश्वास करने योग्य तथा हमेशा अपने मित्र को गुणों में-धर्म मार्ग में जोड़ने की इच्छा रखने वाला ही सच्चा मित्र है । ये ही सच्चे मित्र के लक्षण हैं । जो ऐसा हो उसके साथ ही मित्रता करनी चाहिए | Jain Education International ३४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002546
Book TitleNidi Sangaho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar
PublisherJain Sahitya Vikray Kendra Udaipur
Publication Year
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy